दिल्ली की 16 प्रतिशत महिलाएं कम उम्र में निसंतानता की शिकार

नई दिल्ली। तैंतीस साल की अंकिता (बदला हुआ नाम) शादी के 7 साल बाद भी मां नहीं बन पाई थी। वह मधुमेह और हाइपरथायरोडिज्म से पीडित है। इस जोडे ने आईयूआई के 6 चक्र अपनाए और आईवीएफ का 1 सेल्फ-साइकल चक्र अपनाया। लेकिन सारी कोशिशें व्यर्थ रहीं। फिर जब वे नई दिल्ली में नोवा इवी फर्टिलिटी सेंटर में आए, तो वहां अंकिता की जांच के बाद पता चला कि अंकिता के अंडाशय में अब कोई अंडा शेष नहीं बचा है (उसके एएमएच बहुत कम थे और इसी तरह फाॅलीक्यूलर काउंट भी बहुत कम निकले)। इसके बाद अंकिता को डोनर एग्स के साथ आईसीएसआई (प्ब्ैप्) की सलाह दी गई। यह उपचार कारगर रहा और आखिरकार अंकिता गर्भधारण करने में कामयाब रही।

नोवा इवी फर्टिलिटी, नई दिल्ली में फर्टिलिटी कंसल्टेंट डाॅ पारुल सहगल कहती हैं, ‘‘प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) को समय से पूर्व अंडाशय में खराबी आने के रूप में जाना जा सकता है। इसमें कम उम्र में ही (35 वर्ष से कम उम्र में) अंडाशय में अंडाणुओ की संख्या में कमी आ जाती है। सामान्यतः महिलाओं में 40-45 वर्ष की उम्र तक अंडे बनते रहते हैं। यह रजोनिवृत्ति से पहले की औसत आयु है। पीओएफ के मामलो में महिलाओं में तीस वर्ष की उम्र में ही अंडाणु नहीं मिलते हैं।‘‘
अनुसंधान से पता चलता है कि लगभग 1-2 प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं। इसके अतिरिक्त, 35 से 39 साल की उम्र के बीच महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। नोवा इवी फर्टिलिटी और इवी, स्पेन द्वारा किए गए एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि कोकेशियन महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं की ओवरीज छह साल अधिक तेज है। इसके बारे में निहितार्थ बहुत गंभीर हैं – इन दिनों जोड़े पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं और देरी से विवाह करते हैं और इसी तरह गर्भधारण भी देर से करते हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि भारतीय महिलाओं की जैविक घड़ी तेजी से टिक-टिक कर रही है। एक हालिया विश्लेषण में भी 36 वर्ष से कम उम्र की भारतीय महिलाओं में बांझपन के सामान्य कारणों को पाया गयाः
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) महिलाओं में बांझपन का सबसे सामान्य कारण माना जाता है, जो लगभग 20ः महिलाओं में होता है।  चेतावनी की बात यह है कि 18-20 प्रतिशत युवा महिलाएं लो ओवेरियन रिजर्व या समयपूर्व अंडाशय की विफलता से ग्रस्त हैं। माना जाता है कि लो ओवेरियन रिजर्व आम तौर पर बडी उम्र के बाद होता है (35 से अधिक)।  फैलोपियन ट्यूब क्षतिग्रस्त होने पर महिलाओं को स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण नहीं हो सकता है। निसंतानता के 9 प्रतिशत मामलों में यही कारण जिम्मेदार होता है।
एंडोमेट्रियोसिस – एक ऐसी स्थिति जिसमें महिला के गर्भाशय (एंडोमेट्रियम) के अंदर के टिश्यूजं गर्भाशय के बाहर बढ़ते हैं, जिससे दर्दनाक माहवारी होती है – 5 प्रतिशत निसंतान महिलाओं में यही कारण होता है।
डाॅ पारुल सहगल आगे कहती हैं, ‘‘बांझपन, या स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थता, पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है। आम तौर पर एक प्रचलित गलत धारणा है कि बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है। पुरुष बांझपन की घटनाएं बढ़ रही हैं और ऐसा उन शहरों में बड़े पैमाने पर हो रहा है जहां लोग तनावपूर्ण जीवनशैली से गुजर रहे हैं। बांझपन के लगभग 45 प्रतिशत मामलों में पुरुष कारक पाया जाता है। कई मामलों में पुरुषों से जुडी प्रजनन समस्याओं का पता नहीं चल पाया और न ही इलाज किया गया, क्योंकि या तो उनके साथी पर ध्यान केंद्रित किया गया या पुरुष ऐसे मामलों मंे कोई मदद हासिल करने में खुश नहीं होते हैं या फिर वे इसे सही समय पर ढूंढने में असमर्थ होते हैं।‘‘

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *