उत्तरप्रदेश में कांग्रेस अकेले लड़ेगी लोकसभा चुनाव!

नई दिल्ली।  उत्तरप्रदेश ने 2009 में कांग्रेस को लोकसभा की 22 सीटें देकर केन्द्र में यूपीए की सरकार बचाई थी। उस समय कांग्रेस ने राज्य में न तो समाजवादी पार्टी (सपा) से न ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से गठबंधन किया था। 2019 के बदले माहौल में कांग्रेस यदि सपा व बसपा से गठबंधन किये बिना लड़ेगी तो 2009 से भी अधिक सीटें जीत सकती है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि बृहस्पतिवार 03 जनवरी को कांग्रेस के रणनीतिकारों की बैठक में तय हुआ कि कांग्रेस पार्टी उ.प्र. में लोकसभा चुनाव कुछ छोटे दलों के साथ गठबंधन करके लड़ेगी| सपा व बसपा के साथ मिलकर नहीं, क्योंकि अब जनता कांग्रेस के साथ खड़ी होने लगी है। ऐसे समय में अब केन्द्र सरकार व उसकी सीबीआई, आयकर व ईडी से डरी सपा व बसपा की सौदेबाजी में झुकना कांग्रेस के लिए आत्मघाती होगा।

इस बारे में पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का मानना है कि पार्टी जब उ.प्र. में मजबूत होगी, तभी देश में भी मजबूत होगी। माहौल अब बनने लगा है। इसके लिए पार्टी अध्यक्ष भी मेहनत कर रहे हैं। इसलिए सबसे सम्मानजनक तरीके से बात करते हुए रास्ता बना रहे हैं।

उ.प्र. में सपा व बसपा को सम्मान देते हुए कांग्रेस के अकेले लोकसभा चुनाव मैदान में जाने की योजना के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के वकील वी. चतुर्वेदी का कहना है कि इसके दो कारण हैं। पहला, सपा व बसपा के नेता आय से अधिक संपत्ति व कई घोटालों के मामलों में केन्द्र सरकार व उसकी सीबीआई,आयकर व ईडी की नोटिस से डरे हुए हैं। इनको संकेत किया गया है कि यदि कांग्रेस से चुनावी गठबंधन करोगे तो आय से अधिक सम्पत्ति व घोटालों के मामलों में सीबीआई,आयकर ,ईडी की जांच में और फंसोगे| छापेमारी, पूछताछ शुरू हो जाएगी।

इस सबके डर से इन दलों के नेताओं ने छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश ,राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी कई बहाने करके कांग्रेस से समझौता नहीं किया, और उसको नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। इसलिए केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी व उसके तंत्र से डरे ऐसे नेताओं से सम्मानजनक दूरी ही अच्छी रहेगी।

दूसरा, केन्द्र की भाजपानीत सरकार व उसके हुक्मरान से सीधी लड़ाई केवल कांग्रेस व उसके नेता राहुल गांधी लड़ रहे हैं। सपा के अखिलेश, मुलायम और बसपा की मायावती नहीं। इसे देश की जनता भी देख रही है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में तमाम अड़चनों के बावजूद जनता ने संसाधन विहीन कांग्रेस को वोट दिया। अगड़ी जाति, अन्य पिछड़ी जाति, दलित व मुसलमान मतदाताओं ने भी आगे बढ़कर कांग्रेस का हाथ थामा ।

लोकसभा चुनाव में इन जातियों के मतदाता उ.प्र. में एकजुट होकर कांग्रेस को वोट दे सकते हैं। क्योंकि, लोकसभा में लड़ाई नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी होगी। मोदी से आमने-सामने, बिना डरे सीधे प्रमाण देकर लड़ाई राहुल गांधी लड़ रहे हैं। इसके कारण जनता अब राहुल के साथ खड़ी होने लगी है। लड़ाई मोदी बनाम जनता होती जा रही है।

इन दो कारणों से कांग्रेस को उम्मीद है कि उ.प्र. में 2019 में उसको 80 लोकसभा सीटों में से लगभग 25 सीटें मिल सकती है। इसलिए वह सपा व बसपा से गठबंधन नहीं करेगी, अपने बलबूते लड़ेगी। इससे पूरे राज्य में उसके नये कार्यकर्ता भी बनेंगे, पार्टी भी मजबूत होगी।

इधर सपा और बसपा में 37-37 सीटों पर तालमेल होने की खबर के बारे में सपा सांसद रवि वर्मा का कहना है कि जब तक दोनों दलों द्वारा आधिकारिक घोषणा नहीं हो जाए, तब तक सीटों के बंटवारे के बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं है। जब होगा तो सबके सामने आ जाएगा। इस बारे में बसपा का कोई भी राज्यसभा सांसद मुंह खोलने को राजी नहीं है। जिस भी सांसद से पूछिए, बहन जी के डर से इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर देता है।

इस मुद्दे पर भाजपा के सांसद लालसिंह बड़ोदिया का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह दोनों ही उ.प्र. में बहुत काम कर रहे हैं। इसलिए इस बार सीटें और बढ़नी चाहिए। सपा, बसपा व कांग्रेस वाले कुछ भी कर लें, उनके सपने पूरे होने वाले नहीं हैं।
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