जस्टिस संजीव खन्ना को पद अस्वीकार करना चाहिए: एडवाकेट नवरतन चौधरी

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना को पदोन्नत करके सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया है। कानून एवं न्याय मंत्रालय के नोटिफिकेशन के अनुसार, सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाईकोर्ट के जज संजीव खन्ना को उनकी पदोन्नति कर सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया। यह आदेश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर के बाद जारी किया गया, जिनकी सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पांच जजों की तरफ से की गई थी। जिसके बाद कानूनी बिरादरी में इस पर सवाल खड़े किए गए।

इस मामले में एडवाकेट नवरतन चौधरी ने सवाल खडा किया है। दिल्ली हाइकोर्ट में उन्हांेने सवाल उठाया कि क्या ये बेहतन नहीं होता कि जस्टिस संजीव खन्ना यह पद अस्वीकार करते और न्यायिक प्रक्रिया में एक उदाहरण प्रस्तुत करते ? आखिर यह कौन सी मजबूरी रही कि जस्टिस खन्ना को इस तरह पदोन्नत किया गया ? 32 सीनियर जजों की अनदेखी कर जस्टिस संजीव खन्ना और दिनेश माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करना ऐतिहासिक भूल होगी।

बता दें कि उच्चतम न्यायालय के पांच सदस्यीय कॉलिजियम ने 11 जनवरी को इन दोनों न्यायाधीशों को शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी। गौर करने योग्य यह भी है कि दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कैलाश गंभीर ने हाईकोर्ट के दो जजों की पदोन्नति कर सुप्रीम कोर्ट भेजने की सिफारिश का विरोध किया है। कॉलेजियम के फैसले का विरोध करते हुए उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्‌ठी भी लिखी है। जस्टिस (रिटायर्ड) गंभीर ने गंभीर ने लिखा कि 11 जनवरी को मैंने खबर पढ़ी कि कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना को कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की सिफारिश की है। पहली नजर में मुझे इस पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन यही सच था।

एडवोकेट नवरतन चौधरी ने जस्टिस खन्ना के प्रमोशन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट में उनसे सीनियर तीन जज और हैं। ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट भेजना गलत परंपरा की शुरुआत होगी। उन्होंने कहा कि इस मामले में बार एसोसिएशन को हस्तक्षेप करना होगा। बार एक अभिभावक के तौर पर तमाम मामलों को देख सुन रही है।

 

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