बरेली की जनता का है कहना, रिकाॅर्ड बरकरार रखेंगे संतोष गंगवार

समृद्धि भटनागर

बरेली। चुनावी राजनीति में जब तक जनता का मत आपके पक्ष में नहीं आ जाता है, यकीनी तौर पर कुछ कहा नहीं कहा जा सकता है। बरेली में आकर जब चुनावी राजनीति की पडताल की, तो पता चला कि जनता में आज भी केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रत्याशी संतोष गंगवार का जलवा है। उनकी कार्यशैली और सहज उपलब्धता लोगों को भाती है। मोदी सरकार में जिस प्रकार से उन्होंने अपने क्षेत्र में विकासात्मक कार्य किया है, जनता ने उसको भी देखा है।

आबादी के हिसाब से यूपी का आठवां और भारत का 50वां सबसे बड़ा शहर सियासी तौर पर तीन दशक से बीजेपी के संतोष गंगवार का गढ़ माना जाने लगा है। इस बार उनके सजातीय और गठबंधन के भगवत सरन गंगवार सीधी चुनौती को देते दिख रहे हैं। बरेली में इस बार चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार अब से दस साल पहले 2009 में भी आमने-सामने हो चुके हैं। तब बसपा ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था। इस बार भी भाजपा सासद संतोष गंगवार के मुकाबले सपा-बसपा गठबंधन से भगवत सरन गंगवार मैदान में हैं। वह नवाबगंज के पूर्व विधायक हैं। कांग्रेस ने प्रवीण सिंह ऐरन पर दाव लगाया है। ऐरन 2009 में इसी संसदीय सीट से चुनाव जीत चुके हैं। बीजेपी के संतोष गंगवार की मजबूती है उनका सात बार सांसद रहना। अनुभवी होने के साथ संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण भी उनके अनुकूल है। कमजोरी के तौर पर सपा बीएसपी-आरएलडी गठबंधन की ताकत देखी जा सकती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में जातीय वोटों में सेंध लगने के बाद इस बार भी खतरा।

हालांकि, चुनावी बिसात पर हर चाल के कई मायने होते हैं। यहां की चुनावी परिदृश्य की बात करें, तो कह सकते हैं कि इस अखाड़े के सभी पहलवान अनुभवी हैं और एक-दूसरे के दावपेच भली भाति जानते हैं और यही वजह है कि बरेली संसदीय क्षेत्र में चुनावी बयार को भाप पाना थोड़ा मुश्किल है। वैसे यह सीट भाजपा के प्रभुत्व की है और संतोष गंगवार यहा से सात बार चुने जा चुके हैं। एक बार फिर वह मैदान में हैं। लड़ाई बहुत आसान नहीं है क्योंकि इन्हीं प्रत्याशियों के बीच 2009 में उनकी गणित गड़बड़ा गई थी। उस समय भी सपा से भगवत सरन गंगवार और काग्रेस से प्रवीण सिंह ऐरन मैदान में थे। समीकरण कुछ ऐसे बैठे कि संतोष गंगवार सीट नहीं बचा सके थे। हालाकि, इस बार वह सतर्क दिखते हैं। कुर्मी-मुस्लिम बाहुल्य इस संसदीय सीट पर इन दोनों वगरें का वोट बहुत कुछ तय करेगा। बरेली संसदीय क्षेत्र में पाच विधानसभाएं हैं। बरेली शहर, बरेली कैंट, भोजीपुरा, नवाबगंज और मीरगंज। नवाबगंज के वोट निर्णायक भी हो सकते हैं, क्योंकि भगवत यहा से जीत कर प्रदेश में मंत्री भी बन चुके हैं। हा, यह आस मुकाम तक तभी पहुंच सकेगी जब ध्रुवीकरण न हो। यही कारण था कि मुख्यमंत्री योगी की सभा सबसे पहले यहीं हुई थी। हालाकि यहा के थोक दवा व्यापारी डब्बू गंगवार का मानना है कि इस बार 2009 वाली स्थिति नहीं है। मतदान बहुत सोच समझ कर होगा। रात करीब साढ़े दस बजे शहर के सैलानी इलाके में चाय की दुकान पर बैठे चार-पाच युवा चुनावी चर्चा छेड़ने पर बोले-‘हमने तो अभी तय नहीं किया कि वोट किसे देना है लेकिन, मतों का ध्रुवीकरण तय है। थोड़ी देर बाद दुकान पर पहुंचे युवा वसीम खान ने खुलकर बातें की’ भाजपा तो यहा कुछ कर नहीं रही तो वोट क्यों मिलेगा।’ लेकिन शहर के सुभाष नगर इलाके के निवासी विनोद कहते हैं कि हमें तो इसी सरकार ने बिजली का कनेक्शन दिया है। लोगों को घर मिले हैं। खाना पकाने के लिए गैस और शौचालय मिले हैं तो वोट भी उसी के अनुरूप होगा। बरेली लोकसभा सीट का परिणाम काफी हद तक देहात के तीन विधानसभा क्षेत्रों पर निर्भर करता है। भाजपा का परंपरागत वोटर इन क्षेत्रों में भले ठंडी सास लेने का मौका दे रहा हो मगर, गठबंधन का वोट बैंक एक बोली बोलने लगा तो चुनौती तगड़ी मिलेगी। हालाकि ऐसा अंदाजा लगाने से पहले इस क्षेत्र में काग्रेस की मौजूदगी पर भी निगाह देनी होगी। इस सीट पर भी काग्रेस अपने चेहरे और मुस्लिम मतदाताओं के भरोसे ही दम भर रही है। मुस्लिम मत कितना और किसके लिए घर से निकलेगा, यह अभी अंदाज लगा पाना मुश्किल है। मीरगंज में विधानसभा चुनाव के दौरान वोटर अपने प्रतिनिधियों के चेहरे बदलते रहे हैं मगर, लोकसभा चुनाव में भाजपा इस क्षेत्र से संतुष्ट नजर आती रही है। 2009 के चुनाव में काग्रेस भी अपनी मौजूदगी दर्शा चुकी है। इस बार कौन सी पार्टी वोटरों को अपने सबसे ज्यादा करीब ला सकेगी, इस पर क्षेत्र के लोगों की मिली-जुली राय मिलती है। हालाकि, तीनों प्रत्याशियों के समर्थकों ने अपनी ताकत झोंक रखी है।

बरेली लोकसभा सीट पर अब तक 16 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। सात बार बीजेपी का कमल यहां खिला हैं। खास बात यह है कि छह बार लगातार बीजेपी जीती और मौजूदा प्रत्याशी संतोष गंगवार सांसद चुने गए। 1952 और 1957 में कांग्रेस, 1962 और 1967 में भारतीय जनसंघ, उसके बाद दो बार कांग्रेस जीती। 1989 में बीजेपी के संतोष कुमार गंगवार ने पहली बार जीत दर्जकर कमल खिलाया। 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 बार बीजेपी को यह सीट देकर इसे अपना गढ़ बना लिया। 2009 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और प्रवीण ऐरन कांगेस से एमपी बने, लेकिन 2014 में मोदी लहर में गंगवार ने फिर से कमल को यहां खिला दिया।

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