सियासी कामयाबी का दूसरा नाम..अमित शाह

कृष्णमोहन झा

2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐतिहासिक सफलता अर्जित की थी तो उसमे अमित शाह के रणनीतिक कौशल की अहम भूमिका थी। अमित शाह तब उत्तरप्रदेश के प्रभारी बनाए गए थे और उन्होंने अपने रणनीतिक कौशल के बल पर लोकसभा की 80 में से 71 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था। भाजपा की सहयोगी अपना दल ने भी प्रदेश में 2 सीटे जीतकर आंकड़े को 73 पर पंहुचा दिया था। शाह के कौशल से समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर सिमट गई थी। लोकदल एवं बसपा तो अपना खाता भी नहीं खोल पाए थे ,वही कांग्रेस केवल अपनी परंपरागत सीट अमेठी एवं रायबरेली को बचाने में ही सफल रही। इस चुनाव में भी शाह के रणनीतिक कौशल एवं पीएम मोदी की करिश्माई लोकप्रियता के बल पर भाजपा के पक्ष में देश में ऐसा माहौल बनाया की पार्टी को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ।

2014 के चुनाव में अमित शाह ने उत्तरप्रदेश में प्रभारी के रूप में अपने कौशल का प्रदर्शन किया था ,लेकिन 2019 में उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उत्तर से लेकर दक्षिण एवं पूर्व से लेकर पश्चिम तक पार्टी की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। पीएम मोदी की लोकप्रियता एवं अमित शाह की अचूक रणनीति ने देशवासियों को इतना प्रभावित किया की विरोधी दलों के पांव के नीचे की जमीन खिसक गई। कुल मिलकर इस चुनाव में पीएम मोदी एवं शाह की जोड़ी ने सोने पे सुहागा की कहावत को चरितार्थ कर दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर शाह की नियुक्ति के बाद पार्टी का जनाधार इतनी तेजी से बड़ा है कि सारे विरोधी दलों को अपने राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आने लगा। देश के अधिकांश हिस्सों में भाजपा की सरकारें बनी। देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस पार्टी के हाथों से सत्ता छीनने में भाजपा यदि सफल हुई है तो उसमे अमित शाह की राजनीतिक सूझबूझ का बहुत बड़ा हाथ रहा है। त्रिपुरा जैसे राज्य में अगर भाजपा सत्ता पर काबिज हुई है तो इसे अमित शाह की ही उपलब्धि माना जाएगा। अब तो विरोधी दलों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि उनके पास न तो पीएम मोदी की तरह कोई करिश्माई नेता है और न अमित शाह की तरह कुशल रणनीतिकार।

अमित शाह को जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौपी गई थी ,तब उन्होंने पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के लिए देशव्यापी दौरे किए। संगठन को मजबूत करने के लिए वे हर राज्य में जमीनी स्तर तक गए। पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं नेताओं के उत्साह में बढ़ोतरी की। अमित शाह के कार्यकाल में ही भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी। पार्टी की सदस्यता बढ़ाने उन्होंने जो अभियान शुरू किया वह अपने आप में अनूठा था। पार्टी की सदस्यता प्राप्त करने के तरीके को भी उन्होंने इतना सरल बनाया कि कोई भी व्यक्ति बस एक मिसकॉल देकर पार्टी का सदस्य बन सकता है। लोगो में पार्टी से जुड़ने का ऐसा उत्साह जागा कि भाजपा की सदस्य संख्या 11 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई और इसके लिए भाजपा को की विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी रूप में गिनीज बुक में स्थान पाने का गौरव प्राप्त हुआ।

अमित शाह ने देश भर में पार्टी को बढ़ाने रणनीतिक कौशल के प्रदर्शन के साथ जमीनी स्तर तक मेहनत की। पश्चिम बंगाल में ममता सरकार दवारा भाजपा कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने के लिए जिस तरह के तरीके अपनाए गए ,उससे कार्यकर्ताओं का मनोबल कम न हो इससे निपटने के लिए उन्होंने पिछले पांच वर्षों में राज्य का 91 बार दौरा किया। कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने सैकड़ो बैठकें की, रैलियां निकाली तथा कई जनसभाएं की। एक समय ऐसा आया कि ममता सरकार ने घबराकर अमित शाह की रैलियों के लिए अनुमति देना ही बंद कर दिया। इससे भी वे भाजपा का मनोबल तोड़ नहीं सकी और आज नतीजे सबके सामने है। भाजपा ने 42 में से 18 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इस जीत से ममता सरकार को अब यह अंदेशा हो गया है कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में भी इस तरह का करिश्मा दोहरा सकती है। लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने पीएम मोदी से ज्यादा सभाओं को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने 144 रैलियां की तो अमित शाह ने 161 सभाओं को सम्बोधित किया। पार्टी अध्यक्ष रूप में शाह ने उन 120 सीटों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जहां भाजपा 2014 में हारी थी। चुनाव में अमित शाह ने पोलिंग बूथों पर लगभग 2 करोड़ 70 लाख कार्यकर्ताओं को तैयार किया। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों को पार्टी से जोड़ने के लिए संपर्क अभियान चलाया। फिल्म, कला ,साहित्य, संस्कृति ,खेल आदि क्षेत्रों की दिग्गज हस्तियों से वे स्वयं जाकर मिले और पार्टी के लिए समर्थन मांगा। ऐसा अनूठा चुनाव प्रबंधन केवल अमित शाह जैसा तीक्ष्ण बुद्धि का नेता ही कर सकता था। लोकसभा में पराजित होने वाली पार्टियों को अब लग रहा है कि उनके पास अमित शाह की काट का कोई इंतजाम नहीं है।

अमित शाह पर अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां है। जिन राज्यों में भाजपा के प्रवेश को ही नामुमकिन समझा जाता था उनके कार्यकाल में वहा भाजपा सत्ता तक पहुंची है। सही समय पर सही निर्णय लेने में भी वे माहिर माने जाते है। जम्मू कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी। यह सरकार तीन साल तक चली। दोनों दलों के बीच मतभेदों की खबरे आती रही लेकिन इस दौरान अमित शाह मौन रहकर सभी स्थितियों का जायजा लेते रहे और फिर एक दिन अचानक उन्होंने मेहबूबा सरकार समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। अमित शाह के इस फैसले की किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई। भाजपा गठबंधन से हटी तो मेहबूबा मुफ़्ती को पद से इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि भाजपा अचानक उनसे समर्थन लेकर सरकार गिरा देगी और उनका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। लोकसभा चुनाव में उन्हें अनंतनाग सीट पर हार की आशंका नहीं रही होगी। भाजपा ने मेहबूबा को यदि सत्ता से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया होता तो निश्चित रूप से वह पार्टी के लिए इतना तो जनाधार बड़ा लेती कि उनकी पार्टी को ऐसी हार का सामना नहीं करना पड़ता। यह अमित शाह के कौशल का ही परिणाम है कि पीडीपी जम्मू कश्मीर में अपना खाता भी नहीं खोल सकी।

अमित शाह अपने रूठे सहयोगियों को मनाने में भी माहिर है। लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने जिस तरह शिवसेना और जेडीयू को साथ आने के लिए मनाया उससे विरोधी भी दंग रह गए। अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से एक ही बैठक में उनके सारे गिले शिकवे दूर कर दिए। शाह की यह बड़ी सफलता थी। उसके बाद महाराष्ट्र में जो परिणाम आए है उसका श्रेय भी इस चतुराईपूर्ण कदम को ही दिया जाएगा। गठबंधन ने महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया। इस जीत पर शिवसेना को विरोधी पार्टी मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे भी भौचक्के रह गए। उन्होंने इसे अकल्पनीय और समझ से परे बताया। अब अमित शाह के रणनीतिक कौशल का लाभ दोनों दलों को इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी मिलना तय है। लोकसभा चुनाव के पूर्व बिहार में राजग के दो घटक दल जेडीयू और लोजपा भी सीटों के बटवारें को लेकर असंतुष्ट नजर आ रहे थे। एक समय तो ऐसा लगा कि यह दोनों दल अलग से चुनाव लड़ने का फैसला न कर ले। इससे राजग को नुकसान पहुंचना निश्चित था। बिहार के मुख्यमंत्री एवं जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार को संतुष्ट कर गिले शिकवे दूर करने का माद्दा अमित शाह जैसे राजनेता के ही बस की बात थी,इसलिए उन्हें मनाने की जिम्मेदारी खुद अमित शाह ने संभाली। बिहार में अपने हिस्से की थोड़ी सीट छोड़कर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि व थोड़ा खोकर अधिक पाने की कला में माहिर खिलाडी है। उत्तरप्रदेश के चुनाव प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने अपने राजनीतिक कौशल के बल पर सभी विरोधी दलों को हतप्रद कर दिया है। अब वे प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी पारी में सरकार का हिस्सा बन चुके है और इसमे कोई संदेह नहीं है कि वे इसमें भी अपनी अलग पहचान बनाने में सफल होंगे। यही भाजपा में अमित शाह होने के यही मायने है|

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

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