जिस बालक के दांत निकल रहे हों, उसे दर्पण क्यों न दिखाएं ?

 

जिस बालक के दांत निकल रहे हों, उसे दर्पण क्यों न दिखाएं ?

ज्योतिष का मूल मनोविज्ञान ही है…और मनुष्य ने, ऋषियों ने ज्योतिष के गणित पक्ष को जानने से पूर्व जीवन की गतिविधियों से जाना था कि मन सबसे महत्वपूर्ण अदृश्य भाग है, जो शरीर में दिखता नहीं है। हम सब उससे ही अधिक प्रभावित हैं…कल्पनाओं की शक्ति, नए नए अविष्कार और क्रियाएं बिना मन के स्थैर्य के सम्भव नहीं, वह अति चंचल है, ग्रहों में इसका उपालम्भ चंद्रमा की घटती बढ़ती कलाओं के कारण हुआ, इसलिए चंद्रमा को मन का स्वामी स्वीकार किया गया।चंद्रमा की कलाओं को दिन रात के चक्र में महत्वपूर्ण माना गया। ऋग्वेद के उपासना युग व्यतीत होने पर यजुर्वेद के कर्म युग में इस पर महत्वपूर्ण कार्य हुए…प्रजापिता परमेष्ठि ऋषि ने इसका अद्भुत वर्णन शिवसंकल्प सूक्त में किया है, जो यजुर्वेद के 34 वें अध्याय में आया है। पतंजलि कहते हैं कि अन्न ग्रहण करने वाला शरीर स्थूल है और भाव ग्रहण करने वाला मन सूक्ष्म शरीर है।
ज्योतिष में मनोविज्ञान से जीवन की गतिविधियों पर मेरे शोध में आया कि मनुष्य मन में जो विचार भयभीत होकर लाता है, उस विचार के अवचेतन मन में स्थापित होने पर ही विचार का असामान्य प्रभाव जीवन पर पड़ता है, इसलिए अवचेतन से उस विचार का चित्र नष्ट करने के लिए कोई ऐसी विधि अपनाई जाती है, जो उस विचार के विरुद्ध अपना कार्य करती है। मनुष्य मूलतया धर्मभीरु प्राणी है, इसलिए किसी भी समस्या के समाधान को धर्म से जोड़कर करने पर उसके मन में जल्द रोग या समस्या विरुद्ध अवधारणा स्थापित हो जाती है। इसलिए मन के रोग का उपाय अवचेतन की शुद्धि के लिए किया जाता है। जब अवचेतन शुद्धहो जाता है, तो दुःखदायी अवस्था नष्ट हो जाती है।
दांत निकलते समय दर्पण न देखने के पीछे भी मनोवैज्ञानिक कारण ही है। दांत निकलते समय मसूड़े फूले हुए, पीड़ायुक्त और असुंदर होते हैं। जबकि पूर्ण दंतपंक्ति सुंदर दिखती है…इसलिए यदि बालक असुंदर अभिव्यक्ति अपने ही शरीर इन देखेगा तो उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव उस बच्चे के मन में नकारात्मक होगा और वह निकलने वाले दांतों को रोग मानकर पीड़ित हो सकता है। इसलिए पूर्वजों ने ऐसी व्यवस्था की कि अधूरेपन को देखा न जाए। जैसे एक कपड़े के टुकड़े टुकड़े करके कपड़े बनाने वाला आपको उनको सिलकर देता है तो आप वस्त्र पहनते हैं, आपने साबुत कपड़ा उसे दिया था, जब वह काट कर रखता है तो लगता है कि सब बेकार कर दिया, लेकिन वस्त्र आकृति में आते ही आप उसे पहनकर खुश होते हैं। इसलिए जिस बच्चे के दांत निकल रहे हों, उसे दर्पण न दिखाएं।

-आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री

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