उफ… ये चुनौती बहुत बड़ी और मंत्रिमंडल छोटा सा

कृष्णमोहन झा
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की एकल सरकार का विस्तार आखिर हो ही गया परंतु मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के एक महीने बाद हुए इस बहुप्रतीक्षित विस्तार से भाजपा के  बहुत से महत्वकांक्षी विधायकों को निराशा हाथ लगी है|  राज्य की लगभग एक माह पुरानी शिवराज सरकार में अब मुख्यमंत्री के अलावा पांच मंत्री हैं जिनमें  सिंधिया गुट के दो  विधायक और भाजपाके तीन विधायक शामिल हैं ,|
सिंधिया गुट से आज गठित मिनी मंत्रिमंडल में स्थान पाने वाले  तुलसी सिलवट और गोविंद सिंह राजपूत पूर्व वर्ती कमलनाथ सरकार में भी मंत्री थे इनके अलावा जिन तीन अन्य विधायकों ने आज मंत्री पद की श़पथ ग्रहण की उनमें नरोत्तम मिश्र का नाम तो पहले ही सुनिश्चित माना जा रहा था |वे गत माह हुए सत्ता परिवर्तन में उनकी विशिष्ट भूमिका ने उन्हें उप मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बना दिया है |मीना सिंह को आदिवासी नेता के रूप में मंत्री मंडल में शामिल करके विंध्य क्षेत्र को भी प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है | कमल पटैल को मंत्रिमंडल में शामिल करके मुख्यमंत्री ने सबको अचरज में डाल दिया है |ऱाजभवन में संपन्न सादे और संक्षिप्त शपथ ग्रहण समारोह में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो किया गया परंतु  मंत्रियों द्वारा मास्क न पहना जाना चर्चा का विषय बना रहा |
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  प्रदेश में कोरोना संकट की गंभीरता के बावजूद मंत्रिमंडल गठित करने में  पहले तो टाल मटोल करते  रहे और जब इस असाधारण  विलंब के लिए उनकी हर तरफ  से  आलोचना होने लगी तो उन्होंने पांच सदस्यीय मिनी केबिनेट का गठन किया |यह निसंदेह आश्चर्यजनक है कि उन्हें केवल पांच मंत्रियों के नाम फाइनल करने में करीब एक माह का लंबा वक्त लग गया |मुख्यमंत्री अब इस आरोप से नहीं बच सकते कि प्रदेश की राजधानी भोपाल और औद्योगिक राजधानी इन्दौर सहित 20 से अधिक जिले अगर रेड जोन में आ चुके हैं तो उसका एक बड़ा कारण मुख्यमत्री का वह अति आत्मविश्वास भी है जिसके वशीभूत होकर वे अकेले ही  कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में अपनी जीत सुनिश्चित मानने की महान भूल कर बैठे थे शिवराज सिंह  चौहान से पूछा जा सकता है कि आखिर किन मजबूरियों के चलते मिनी केबिनेट के गठन में भी उन्होंने इतना लंबा वक़्त लगाया और मुख्यमंत्री के सामने आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि मिनी केबिनेट बनाने के मात्र पांच दिन पहले ही उन्होंने उस टास्कफोर्स  का गठन भी कर डाला जिसके दो महत्व पूर्ण सदस्य मिनी केबिनेट में भी शामिल किए गए हैं |अब यह उत्सुकता का विषय है कि  पार्टी के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्र एवं कांग्रेस से बगावत कर भाजपा की सरकार गठन का मार्ग प्रशस्त करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी तुलसीसिलावट के मंत्री बन जाने के बाद  टास्क फोर्स में  क्या उनके स्थान पर नए सदस्य मनोनीत किए जाएंगे या वे टास्कफोर्स में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहेंगे |
अगर ऐसा ही हुआ तो फिर टास्कफोर्स में उनका कद बाकी सदस्यों से कहीं अधिक ऊंचा प्रतीत होगा और यह बात टास्कफोर्स के कुछ सदस्यों की कुंठा और असंतोष का कारण बन सकती है | गौरतलब है कि सत्तारूढ दल के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्य के पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने टास्कफोर्स के सदस्य के रूप में उसकी पहली बैठक में ही मुख्यमंत्री से यह सवाल किया था कि क्या टास्कफोर्स के  सदस्य कोरोना संक्रमण से संबंधित मामलों में सीधे ही प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश दे सकेंगे |  इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि टास्कफोर्स का अस्तित्व तो  बना रहे परंतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल और टास्कफोर्स के कर्तव्य और अधिकार अलग अलग तय कर दिए जाएं क्यों कि टास्कफोर्स में सत्तारूढ़ पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष वी डी शर्मा पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह सहित संगठन के अनेक कद्दावरनेता शामिल हैं |मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  दो टास्कफोर्स और पांच सदस्यीयकेबिनेट के गठन के बाद अगर यह मान बैठे हैं कि वे अपने मंत्रिमंडल का विस्तार अब  फुरसत से करेंगे तो उनकी यह धारणा गलत भी साबित हो सकती है |उनकी पिछली सरकारों में मंत्री रह चुके पार्टी के अनेक वरिष्ठ और कद्दावर नेता इस सरकार में भी मंत्री पद पाने के लिए तैयार बैठे हैं | इनमें गोपाल भार्गव, भूपेन्द्रसिंह, राजेन्द्र शुक्ल, गौरीशंकर बिसेन ,रामपाल सिंह और यशोधरा राजे सिंधिया के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं |इन लोगों को मंत्रिमंडल विस्तार के दूसरे चरण में मंत्रीपद से नवाजने का आश्वासन दिया गया है जो मई के प्रथम सप्ताह तक संभावित है |अगर उन्हें लंबा इंतज़ार करने के लिए विवश किया गया तो मुख्यमंत्री पर दबाव बढ़ सकता है | मुख्यमंत्री के लिए मंत्रिमंडल का बार बार पुन:विस्तार करना भी  कठिन चुनौती से कम नही होगा |सिंधिया गुट के जिन 22विधायकों की कांग्रेस पार्टी से बगावत के कारण भाजपा सवा साल में ही सत्ता में वापसी करने का सुख मिला है उनमें पूर्व वर्ती कमलनाथ सरकार के 6 मंत्री शामिल थे,इसलिए मुख्य मंत्री चौहान को मंत्रिमंडल विस्तार के दूसरे चरण में सिंधिया गुट के पूर्व मंत्रियों को मंत्री पद से नवाजना  होगा |उन्हें उनके इस अधिकार से वंचित करने की बात तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोच भी नहीं सकते लेकिन मुख्यमंत्री के सामने तब यह दुविधा भी हो सकती है कि एक ही क्षेत्र से सिंधिया गुट के बागी विधायकों और भाजपा के समर्पित विधायक में से किसे वरीयता प्रदान करें |
दरअसल, मुख्यमंत्री के सामने  सबसे बड़ी दुविधा यह थी कि अपने मंत्रिमंडल के लिए उन्हें केवल पांच सदस्यों का चयन करना था और इस छोटे से मंत्रिमंडल में भी क्षेत्रीय जातीय और गुटीय संतुलन साधने की कठिन चुनौती  उनके सामने थी इसीलिए पांच मंत्रियों के नाम तय करने के लिए भी उन्हें पार्टी के केन्द्रीय नेताओं से मशविरा करना पड़ा |ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी उनकी राय मांगी गई और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपीनड्डा की सहमति से इस मिनी केबिनेट को अंतिम रूप दिया गया |
            गौरतलब है कि विपक्षी कांग्रेस पार्टी  पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री चौहान पर यह आरोप लगा रही थी कि प्रदेश में कोरोना वायरस के कारण जो चिन्ताजनक स्थिति निर्मित हुई है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि संकट की गंभीरता के बावजूद मुख्य मंत्री  अकेले ही मैदान में  डटे हुए हैं | उनके पास कोई टीम न होने के कारण प्रदेश में कोरोना संकट निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों ठीक से मानीटरिंग नहीं हो पा रही है |कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने तो राष्ट्रपति को एक पत्र लिखकर शिवराज सरकार को बर्खास्त करने की मांग तक कर डाली थी जिसका पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सब्बल ने समर्थन किया था | इसमें दो राय नहीं हो सकती कि मुख्यमंत्री चौहान के द्वारा मंत्रिमंडल गठन में किए जा रहे असाधारण विलंब ने उन्हें बचाव की मुद्रा में ला दिया था और आज भी उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नही है कि अगर उन्हें मंत्रिमंडल में शुरू में केवल पांच मंत्री ही रखना थे तो फिर इस काम में इनमें इतना वक्त क्यों लगा दिया | मुख्यमंत्री या यह साबित करना चाहते थे कि कोरोनावायरस के विरुद्ध लड़ाई जीतने के लिए उन्हें अपने साथ किसी टीम की जरूरत नहीं है या फिर उन्हें यह डर सता रहा था कि मंत्रिमंडल का गठन कहीं उनके लिए कोरोना से भी बड़ी चुनौती न बन  जाए,| कारण जो  भी हो लेकिन यह एक कडवी हकीकत है कि कोरोेना वायरस के प्रकोप के समय मुख्यमंत्री केअतिआत्मविश्वास की प्रदेश को महंगी कीमत चुकाना पड़ी है और अब मुख्य मंत्री ने जो टीम बनाई है उसके सामने कोरोना की चुनौती बहुत कठिन रूप धारण कर चुकी है |

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