कोरोना, आर्थिक मंदी और विदेशी साजिश…

निशिकांत ठाकुर

वैश्विक महामारी कोविड-19 से उत्पन्न संकट के कारण दुखदायी और अविस्मरणीय लॉकलाउन के बाद तो देश के आम नागरिकों में एक गंभीर डर ने जन्म ले लिया है। लेकिन, कटु सच यह भी है कि यदि इस महामारी से बचाव की खातिर सरकार ने जो कुछ भी किया, उसे अनुचित तो कतई नहीं कहा जा सकता। ऐसा कठोर कदम उठाना सरकार की जरूरत ही नहीं, मजबूरी भी थी। यदि ऐसा निर्णय नहीं लिया गया होता तो आज देश में कोरोना वायरस के संक्रमण से मरनेवालों की संख्या लाखों में होती। सरकार के कार्यों की भरपूर प्रसंशा होनी चाहिए, क्योंकि संकट के इस समय में सभी को सरकार के साथ एकजुट होकर खड़े होने की आवश्यकता है। इसके लिए मेडिकल टीम, पुलिस-प्रशासन ने भी अपनी जिम्मेदारी का भरपूर पालन किया। अब तीसरे चरण के लॉकडाउन में सरकार ने देश के अलग-अलग हिस्सों को तीन चरणों में रेंड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट कर यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि यदि स्थिति ठीक रही तो लोगो को फिर से अपना जीवन सामान्य तरीके से जीने का अवसर मिलेगा। एक भरोसा, एक विश्वास सरकार के प्रति लोगों के मन में अब जन्म लेने लगा है। अब तक कमोबेश सबकुछ ठीक ही रहा, लेकिन कहीं-न-कहीं कुछ गलत भी जरूर हुआ, जिसका कुप्रभाव पता नहीं कितने समय तक देश को भोगना पड़ेगा और कब तक विकास का वह चक्र उस गति से घूमने लगेगा, जैसा अब तक घूम रहा था और देश विकास की दौड़ में आगे निकल रहा था।

पहले फेज का लॉकडाउन अप्रत्याशित था। आमलोगों, विशेषकर गरीब, मजदूर, दिहाड़ी कामगार, रिक्शा चलाने व ठेला लगाने वाले के साथ समाज के न जाने कितने ऐसे लोग थे, जिन्हें दूसरे दिन पता चला कि सबकुछ बंद है और देश में लॉकडाउन रूपी कर्फ्यू लग चुका है। समाज के ऐसे लोगां के लिए सरकार ने तात्कालिक इंतजाम तो जगह-जगह किए, पर वह इतने सक्षम और ठोस नहीं थे कि हर किसी में अघोषित कैद के बावजूद जीने का उत्साह बढ़ा सके और उन्हें समझा सके कि उनके लिए सरकार ठोस उपाय कर रही है। स्वाभाविक तौर पर ऐसे में सभी हताश हो गए और जीने के लिए जिधर जिसे जो रास्ता मिला, अपने परिवार के साथ उधर ही निकल पड़े। हृदय को विचलित करने वाला वह दृश्य कितना भयावह था। मजदूरों की टोली, साथ में उनकी पत्नी-बच्चे, सिर पर घरेलू सामान का बोझा और सैकड़ों किलोमीटर की अंतहीन यात्रा…। इस मार्मिक स्थिति को देखकर कई राज्य सरकारों का हृदय पिघला और उनके गंतव्य तक पहुंचने में उनकी मदद की। कई राज्य सरकारों ने उन मजदूरों की पीठ पर हाथ रखा और उन्हें उनके शहर तक जाकर छोड़ा। ऐसे राज्यों में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी सराहनीय कार्य किया। इस सरकार ने उन बेबस मजदूरों की भावनाओं और परेशानियों को समझा और उनके लिए समय पर उचित निर्णय लेकर मानवता की रक्षा के उचित कदम उठाया।

और, अब फेज तीन का लॉकडाउन। असहनीय और देश के लिए दुखद। बिना काम-धंधे के पिछले डेढ़ माह से भूखे-प्यासे रोज कमाने और खाने वाले मजदूर अब आजिज हो गए। वह कहने लगे हैं कि यहां वह दुबारा वापस नहीं आएंगे, क्योंकि सरकार ने उनका कोई ख्याल नहीं रखा। एक कमरे में दस-बारह लोगों के साथ भीड़ में रहनेवाले क्या आपस में शारीरिक दूरी रख रहे थे? जबकि, उनकी केवल इतनी ही मांग थी कि उन्हें गांव, अपने समाज व परिवार के पास भेज दिया जाए। ऐसा किन कारणों से किया गया कि न तो उन्हें घर भेजा गया, न ही उनके रहने और गुजारे का कोई प्रबंध किया गया? क्या कहीं सरकार की भावी नीतियों के साथ षड्यंत्र तो नहीं रचा जा रहा है? यदि नहीं तो ऐसा क्या कारण था कि देश के विभिन्न शहरों और कस्बों में रोजी-रोटी कमाने वाले मजदूर अपने परिवार-समाज के पास जाना चाहते थे, लेकिन कतिपय सरकारी अदूरदर्शिता अथवा भावी षड्यंत्र के कारण उन्हें उन्हीं जगहों पर रुकने के लिए मजबूर किया गया। अब जब बड़ी-बड़ी कंपनियों, संस्थानों में लोग ही नहीं होंगे, तो फिर उद्योगों की उपयोगिता क्या रहेगी? उसमें उत्पादित होने वाले माल का क्या होगा? क्या उसकी कमी देश में नहीं होगी? इसमें कहीं-न-कहीं से विदेशी षड्यंत्र की बू भी आती है, क्योंकि यदि उन सामानों का उत्पादन अपने यहां नहीं हो रहा है तो उसकी आपूर्ति तो किसी-न-किसी रूप में कहीं-न-कहीं से तो होगी ही और जब अपने देश में उत्पादन ठप होगा तो उन सामग्रियों का तो हमें आयात ही करना पड़ेगा! वह देश कौन-सा होगा? क्या वह कहीं चीन तो नहीं, जिसके लिए कहा जाता है कि वह कोरोना रूपी महामारी का जन्मदाता है। क्या निकट भविष्य में चीन विश्व का सबसे शक्तिशाली देश तो नहीं बनने जा रहा, क्योंकि जिस प्रकार विश्व के सारे देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने वाले हैं, उसमे चीन सबसे शक्तिशाली है और हो सकता है कि यह सारा षड्यंत्र उसी के द्वारा ही रचा गया हो और अपना कब्जा विश्व को आर्थिक मंदी के दौर में धकेलकर करना चाह रहा हो। इसलिए वह इस प्रकार भारत को भी कमजोर करना चाहता हो।

निश्चित रूप से यह एक बहुत बड़ा विदेशी षड्यंत्र है और भारत सरकार को चीन की इस गहरी साजिश के बारे में विश्व को अवगत कराते हुए इसकी जांच करानी चाहिए। यदि यह विदेशी साजिश नहीं, तो जांच से कम-से-कम दूध का दूध और पानी तो साफ हो जाएगा। अब देखना तो यह भी होगा जिन उद्योगों में अभी लॉकडाउन का ताला लगा है, लॉकडाउन खत्म होने के बाद कितने लोग वापस लौटते हैं और अचानक बैठ चुके उद्योगों को कितने दिनों में चलने योग्य बना सकते हैं, क्योंकि देश के कई उद्योगों ने इसी बीच अपने यहां मजदूरों और कर्मचारियों का भार कम करने के नाम पर गाजर-मूली की तरह काटकर संस्थान से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। विश्व कितने बड़े संकट से गुजरेगा, केवल इसकी जानकारी उन साजिशकर्ताओं को होगी, क्योंकि जिस योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया गया है, उसमे यह कह सकना मुश्किल है कि विकास की पटरी से उतर चुकी अर्थव्यवस्था रूपी गाड़ी फिर कब सरपट दौड़ पाएगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

(लेखक वरिष्ठ विश्लेषक और पाक्षिक पत्रिका ‘शुक्लपक्ष’ के प्रधान संपादक हैं)

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