जज्बे और जुनून का दूसरा नाम हैं आईएएस रविन्द्र कुमार

समृद्धि भटनागर

पत्रकारीय जीवन में लोगों से मिलना जुलना होता रहा है. आम और खास दोनों तरह के लोग हमारी रोजमर्रा की जीवन के अहम हिस्सा हैं. ऐसे में कुछ खास लोग ऐसे मिलते हैं, जो भीड में बिलकुल अलग होते हैं। ऐसे ही प्रतिभा के धनी हैं आईएएस रविन्द्र कुमार. भारतीय प्रशासनिक सेवा के इस अधिकारी के पास प्रशासनिक कौशल के साथ शौक है. जज्बा और जुनून है, जिसके सहारे ये अपने शौक को पूरा करते हैं। समाज के सामने मिसाल पेश करते हैं. अभी कोरोना काल में भी वे लगातार कार्य कर रहे हैं. सरकार की ओर से जब भी जिस पद पर पदस्थापना की गई, उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई.

रविंद्र कुमार ऐसे पहले और एक मात्र आईएएस अफसर हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता पाई है. पहली बार नेपाल के रास्ते उन्होंने 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता पाई थी. इस बार वह 23 मई 2019 को तड़के 4.20 बजे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में कामयाब रहे थे. रविंद्र कुमार इस बार ‘स्वच्छ गंगा, स्वच्छ भारत अभियान 2019’ के तहत एवरेस्ट पर पहुंचे थे.

पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय में तैनात रविंद्र कुमार बताते हैं कि इस बार उनका फोकस पानी था. एवरेस्ट पर चढ़कर उन्होंने लोगों से जल प्रदूषण रोकने, नदियों और सबके लिए स्वच्छ जल के अन्य स्रोतों को बचाने का आह्वान किया है. रविंद्र कुमार ने अपने अभियान का नाम “स्वच्छ गंगा, स्वच्छ भारत एवरेस्ट अभियान 2019” रखा. इस दौरान वह अपने साथ गंगा जल को दुनिया के सर्वोच्च शिखर पर लेकर गए ताकि लोगों का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया जा सके. क्योंकि गंगा नदी भारत के लगभग एक करोड़ लोगों को पानी मुहैया कराती है.

जन्मदिन के अवसर पर डिजायर न्यूज परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामना

रविंद्र कुमार बताते हैं कि वह पहली बार 2011 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे. उन्हें इसकी प्रेरणा 2011 में सिक्किम में हुए भूस्खलन से मिली थी, जहां पर्वतारोहियों को तलाशी अभियान के लिए बुलाया गया था. दूसरी बार वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए 2015 में एवरेस्ट पर चढ़े, लेकिन इस दौरान उन्हें नेपाल में आए भीषण भूकंप की त्रासदियों का भी सामना करना पड़ा था.

रवींद्र कुमार बिहार के बेगूसराय जिले के चेरियाबरियारपुर प्रखंड के बसही गांव निवासी शिवनंदन प्रसाद सिंह के बेटे हैं. बातचीत में उन्होंने बताया कि उनकी पढ़ाई चेरियाबरियारपुर बसी ग्राम के प्राथमिक विद्यालय से शुरू हूई. फिर वह नवोदय विद्यालय, फिर मुम्बई के चाणक्या सेंटर से पढ़ाई कर मर्चेंट नेवी में जॉब किए. लगभग 9 वर्षों तक यूरोपियन फिनावल स्पा में कार्यरत रहे फिर उन्होंने आईएस की पढ़ाई की और पास करने के बाद सिक्किम में उनका पोस्टिंग हूई. वहीं से उन्हें इसका शौक लगा.

सिक्किम जाने के बाद ही आपको लगा कि आप कुछ अलग भी कर सकते हैं?
जी हां, सिक्किम जाने के बाद मैंने वहां के बारे मे खूब पढ़ा. वहां जाकर मुझे मालूम हूआ कि यहां भूकंप आया था तो उस वक्त बहुत सारे पर्वतारोही को राहत और बचाव कार्य में योगदान देने के लिए बुलाया गया. मैंने सोचा क्यों न मैं भी सीख लूं. अगर भविष्य में कभी जरुरत पड़ी तो किसी की मदद तो कर सकूंगा. फिर मैंने ट्रेनिंग करने की सोचा. कुछ और करने की सोच ने इसी सोच ने एवरेस्ट के लिए प्रेरित किया. मैंने सोचा आईआईटी किया आईएएस किया तो बस ये भी कर सकता हूं. उनका मनना है कि कुछ भी दुनिया में असंभव नहीं है. इसलिए बचपन से उन्होंने बहुत तप किया. सकारात्मक सोच को हमेशा आगे रखा. यही उनके लिए अहम रहा. मेंटल और फिजिकल फिट होना सबसे अहम है. लोगों को कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. इसी सोच को आगे रख जब आप सोचेंगे तो कामयाबी मिलेगी. मैंने हमेशा जो सोचा उसे पूरा किया.

वह बताते हैं कि 25 अप्रैल 2015 को एवरेस्ट बेस कैंप में रहने के दौरान नेपाल में भूकंप और हिमस्खलन की घटना हुई जिसमें जान माल का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था. नेपाल में आई इस त्रासदी में जान जोखिम में होने के बावजूद रविंद्र कुमार ने कई लोगों की जान बचाई. बहरहाल, चीन (उत्तर) मार्ग से इस वर्ष की सफल चढ़ाई के साथ, वह गिने-चुने उन भारतीयों में से एक बन गए हैं, जिन्होंने नेपाल और चीन दोनों रास्तों से एवरेस्ट पर फतह पाई है.

काम का क्षेत्र पानी को क्यों चुना, इस सवाल पर यूपी काडर के रविंद्र कुमार कहते हैं कि मौजूदा परिदृश्य में, जल क्षेत्र पर ध्यान देना बहुत जरूरी है क्योंकि पीने का पानी बहुत जरूरी है. जून 2018 में ‘कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स’ शीर्षक से प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सहित देश के अन्य 21 शहरों में जल स्तर काफी नीचे चला गया है. 2020 तक भूजल की समस्या से 100 मिलियन लोग प्रभावित होंगे.

रविंद्र कुमार बताते हैं कि शहरी आबादी के अलावा, ग्रामीण आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा पीने के लिए भूजल पर निर्भर है, और 19 राज्यों के 184 जिले दूषित जल से प्रभावित हैं. अपर्याप्त जल और प्रदूषण की वजह से कई नदियां लगभग मरने की कगार पर हैं. इससे भारत की एक बड़ी आबादी प्रभावित होगी, इसलिए इस दिशा में तेजी से काम किए जाने की जरूरत है.

माउंट एवरेस्ट फतह करने का सफर कैसा रहा?
ये तो साफ है कि वह बहुत ही मुश्किल सफर है. तापमान माइनस में रहता है. हवा का दवाब भी बदलता रहता है. माहौल में अंतर रहता है. हवा का दबाव भी बहुत होता है. वहां जाते वक्त रास्ते में आपको डेड बॉडी मिल दिख जाएगी. वहां डिकंपोज नहीं हो सकता है. 10 से 15 साल पुरानी बॉडी होती है. मैंने भी डेड बॉडी देखी. आपके हिम्मत की परिक्षा तभी होती है. आपको बिना डरे आगे बढ़ना होता है.

 

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