मचा है कोरोना का कोहराम, जिम्मेदारी हमें लेनी होगी

समृद्धि भटनागर

कोरोना का डर। काम और रोजगार की चिंता। नतीजा फिर से मजदूरों का पलायन शुरू। यही है देश के बडे शहरों का हाल। आखिर मजदूरों को भरोसा कैसे दिलाया जाए ??? बडे शहरों में कोरोना का डर भी अधिक है। न्यू चैनल देखिए। हर जगह बदइंजामी की बात। कोरोना के कोहराम की बात। आखिर इंसान डरेगा ही न। मेरा मानना है कि अभी के रिपोर्टिंंग में हम सभी को संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए।

हाल के दिनों में जिस प्रकार से कोरोना के दूसरी लहर को लेकर राजनीति हो रही है, उसको भी अभी रोकना चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीधे तौर पर इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहराती है। कुछ आम लोग भी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। देश के प्रधान हैं, तो जिम्मेदारी आपकी ही है। देश में कोई व्यवस्थाएं सही नहीं हो रही है, तो उसे ठीक करना आपका ही दायित्व है।

बडे शहरों में पाबंदी लगने और काम धंधा कम होने के बाद मजदूर और कामगार अपने अपने घरों की लौटने लगे हैं। मुंबई से बीते सप्ताह दिन से पलायन जारी है। कल से राजधानी दिल्ली से भी लोग अपने घरों की लौट लगे हैं।  दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात के प्रवासी मजदूरों का अपने घर वापस लौटना जारी है। एक व्यक्ति ने कहा,  मैं दिल्ली से आ रहा हूं और गोरखपुर जा रहा हूं। वहां लॉकडाउन लग गया, जिसकी वजह से हमारा काम छूट गया है। सूरजपुर दिल्ली स्थित रैक्सीन प्लांट में काम करने वाले तीन युवा मजदूर रामनरेश, अरविंद कुमार व सुधीर दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा के बाद बोरियों व ड्रम में अपना सामान रखकर कौशांबी बस अड्डे पहुंच गए। रामनरेश ने बताया कि उन्हें बहराइच स्थित अपने गांव जाना है। दिल्ली में सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया है। इसलिए कंपनी बंद हो गई है। आगे का कुछ पता नहीं है क्या होगा, इसलिए गांव जा रहे हैं। उन्होंने कहा स्थिति नियंत्रण में आने के बाद वापस आने का फैसला करेंगे। दिल्ली के सीलमपुर में रेहड़ी पटरी पर बर्तन बेचने वाले आरिफ ने बताया कि अपनी पत्नी रूखसार व एक वर्ष के बच्चे के साथ अपना बचा हुआ बर्तन व गृहस्थी का सामान लेकर चंदौसी स्थित घर जा रहे हैं।

प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के लिए आनंद विहार टर्मिनल पहुंचने लगे हैं। उस समय ट्रेन और बसें बंद होने की वजह से लाखों प्रवासी मजदूर पदल ही अपने गांवों की ओर निकल गए थे। भूख-प्यासे मजदूरों ने हजारों किलोमीटर की दूरी तय की थी तो कई रास्ते में ही हादसों के शिकार हो गए। शहरों को छोड़कर चले गए मजदूर लॉकडाउन के बाद दोबारा रोजगार की तलाश में शहरों में लौटने को मजबूर हुए, लेकिन एक बार फिर लॉकडाउन के ऐलान से पिछले साल की तरह पलायन शुरू हो गया है।

क्या घर जाना इतना जरूरी है कि आप कोरोना नियमों की अनदेखी कर दें। असल में, 6 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा होने के साथ ही प्रवासी मजदूर बीते साल की तरह सड़कों पर उतर आए। एक प्रवासी मजदूर ने बताया कि पिछले लॉकडाउन में हम लोग यहां फंस गए थे इसलिए हम लोग अभी ही अपने घर जा रहे हैं। पिछले बार हम लोगों ने यहां बहुत परेशानी का सामना किया था।

वैसे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कामगारों से संयम बरतने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि मैं अपने सभी प्रवासी भाईयों से अपील करना चाहता हूँ, ये छोटा सा लॉकडाउन है, दिल्ली छोड़कर ना जाएं। मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्द ही केस कम होने लगेंगे और हमें ये लॉकडाउन बढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। बता दें कि दिल्ली में  पिछले 24 घंटों में 23,686 नए कोविड मामले, 21,500 रिकवरी और 240 मौतें दर्ज की गई।

भारतीय रेलवे की ओर से कहा गया है कि भारतीय रेलवे सामान्य रूप से अपनी यात्री ट्रेनें चला रहा है। महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए यात्रियों से अनुरोध है कि वे किसी भी तरह की घबराहटध्अटकलों से बचें और स्टेशनों पर तभी आएं जब उनके पास पुष्ट या त्।ब् टिकट हो। सभी सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन करें। दिल्ली डिवीजन में सभी स्टेशनों पर रुकने के लिए प्लेटफॉर्म टिकट की बिक्री तुरंत प्रभाव से बंद कर दी गई है, ऐसा स्टेशनों पर लोगों की भीड़ से बचने के लिए किया गया है।

इस महामारी के बीच जैसे ही कहीं कोई दुर्घटना की खबर मिलती है, तो मन खिन्न हो जाता है। मंगलवार सुबह एक मित्र ने सूचना दी कि दिल्ली से छतरपुर और टीकमगढ़ ले जा रही एक बस की ग्वालियर जिले के जौरसी में पलट जाने से तीन लोगों की मौत हो गई। बस में प्रवासी मजदूर थे। सब इंस्पेक्टर(बायोला थाना) ने बताया,ष्हादसे में 3 की मृत्यु और 5-7 लोग घायल हुए हैं। तेज गाड़ी चलाने की वजह से ये हादसा हुआ है। मन दुखी है।

दिल्ली, मुंबई, इंदौर और पुणें जैसे शहरों में रोगियों को पलंग, दवाइयाँ और ऑक्सीजन के बंबे नहीं मिल पा रहे हैं तो इन करोड़ों गंगाप्रेमी ग्रामीणों का हाल क्या होता ? भारत भयंकर संकट में फंस जाता। इस नाजुक मौके पर इन अखाड़ों के मुखियाओं ने बहुत साहस दिखाया है। वे पाखंड में नहीं फंसे। कई मूर्ख नेता यह कहते हुए भी पाए गए कि कोरोना हो या कोरोना का बाप हो, गंगा मैया में डुबकी लगाओ कि वह भाग खड़ा होगा।इन अंधविश्वासियों से कोई पूछे कि गंगा में डुबकी लगाने से यदि रोग भागते हों या मोक्ष मिलता हो तो उसमें दिन-रात विहार करनेवाले सारे मगरमच्छ भी क्यों नहीं निर्वाण को प्राप्त होंगे ?

हमारे साधु-संतों ने इस मेले के शेष स्नानों को मोटे तौर पर स्थगित करके सभी धर्मावलंबियों को यह संदेश दे दिया है कि हर धर्म, हर अनुष्ठान और हर कर्मकांड देश और काल की उपेक्षा नहीं कर सकता। यदि गंगा-स्नान स्थगित हो सकता है तो मस्जिदों में नमाज़ के लिए और गिरजाघरों में प्रार्थना के लिए भीड़ लगाने की भी कोई जरुरत नहीं है। रमजान के इन दिनों में इफ्तार की पार्टियां बिल्कुल भी जरुरी नहीं हैं। मुसलमान अपना ईद का त्यौहार भी घरों में ही मनाएं तो बेहतर होगा।

महामारी से निबटना किसी एक व्यक्ति या परिवार के बूते की बात नहीं है। हमें अपनी संघीय व्यवस्था में भरोसा करते हुए समवेत प्रयास करने होंगे। हम और आप केवल सरकार के भरोसे नहीं रह सकते हैं। यदि हमारे डाॅक्टर्स और वैज्ञानिक की बात मानते तो शायद देश में दूसरी लहर नहीं आता। आज भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना उपयुक्त व्यवहार की अपील कर रहे हैं। आप देख और समझ लें।

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