
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ ने भारत के प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में हलचल मचा दी है। यह टैरिफ विशेष रूप से कपड़ा, चमड़ा, रत्न-आभूषण, रसायन, समुद्री उत्पाद (झींगा), और मशीनरी जैसे क्षेत्रों को गहरी चोट पहुंचा सकता है।
नई दिल्ली, 7 अगस्त 2025: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ बड़ा व्यापारिक कदम उठाते हुए भारतीय निर्यात पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह फैसला भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद जारी रखने को लेकर लिया गया है, जिसे ट्रंप प्रशासन ने “दंडात्मक कार्रवाई” बताया है। यह टैरिफ 27 अगस्त से लागू होगा।
इस फैसले का सबसे ज्यादा असर कपड़ा, चमड़ा, श्रिंप (झींगा), गहने, और रासायनिक उत्पादों जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर पड़ेगा।
निर्यात में 40-50% तक गिरावट की आशंका
थिंक टैंक GTRI के अनुसार, यह टैरिफ भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में बेहद महंगा बना देगा, जिससे निर्यात में 40–50% तक की गिरावट हो सकती है।
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) ने इस कदम को “भारत के निर्यातकों के लिए एक गहरा झटका” बताया है।
सबसे प्रभावित क्षेत्र:
क्षेत्र | संभावित टैरिफ (%) |
---|---|
बुना हुआ वस्त्र (Apparel – Knitted) | 63.9% |
बुना हुआ परिधान (Apparel – Woven) | 60.3% |
होम टेक्सटाइल्स/मेड-अप्स | 59% |
ऑर्गेनिक केमिकल्स | 54% |
हीरे, गहने और सोने के उत्पाद | 52.1% |
कालीन | 52.9% |
मशीनरी और उपकरण | 51.3% |
फर्नीचर व गद्दे | 52.3% |
कौन भुगतेगा इस टैरिफ का खामियाजा?
कोलिन शाह, मैनेजिंग डायरेक्टर, कामा ज्वेलरी, ने कहा कि इस टैरिफ से भारत के 55% से अधिक निर्यात प्रभावित होंगे।
उन्होंने कहा,
“इस 50% टैरिफ से भारतीय निर्यातक अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में 30–35% अधिक महंगे हो जाएंगे। पहले से ही पतले मार्जिन पर चल रहे MSME निर्यातकों को यह झटका ग्राहक गंवाने पर मजबूर कर सकता है।”
भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा:
- 2024–25 में कुल व्यापार: $131.8 बिलियन
- भारत से निर्यात: $86.5 बिलियन
- अमेरिका से आयात: $45.3 बिलियन
यह महंगा होगा अमेरिकी बाजार में:
- भारतीय कपड़ा और परिधान
- झींगा (Shrimp)
- चमड़ा और फुटवियर
- हीरे व आभूषण
- रसायन और मशीनरी
ट्रंप सरकार के इस कदम से भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में तनाव और बढ़ सकता है। भारतीय निर्यातकों को अब उच्च लागत, बाजार खोने और निवेश में अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।