पिस्ता: शाही मेवा जिसे अब न्यूक्लियर तकनीक बना रही है ज़हर-मुक्त

अब वैज्ञानिक  न्यूक्लियर तकनीक के ज़रिए अपने पसंदीदा पिस्ता को अफ़्लाटॉक्सिन जैसे जानलेवा ज़हर से सुरक्षित बना सकते हैं। यह खोज न केवल वैज्ञानिक सफलता है, बल्कि यह स्वास्थ्य, कृषि और वैश्विक व्यापार की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
ईरान, अमेरिका और तुर्की जैसे देश मिलकर हर साल 10 लाख टन से ज़्यादा पिस्ता का उत्पादन करते हैं।
प्राचीन काल में शाही भोज का हिस्सा रहा पिस्ता, आज दुनियाभर में लोकप्रिय है। कहा जाता है कि शेबा की रानी ने आम लोगों को पिस्ता उगाने से मना कर दिया था और इसे केवल शाही दरबार के लिए सुरक्षित रखा था। आज, ईरान, अमेरिका और तुर्की जैसे देश मिलकर हर साल 10 लाख टन से ज़्यादा पिस्ता का उत्पादन करते हैं।लेकिन इस स्वादिष्ट मेवे के साथ एक खतरनाक ज़हरीला तत्व भी जुड़ा हो सकता है — अफ़्लाटॉक्सिन।

 

क्या हैं अफ़्लाटॉक्सिन?

       अफ़्लाटॉक्सिन एक प्रकार का ज़हरीला रासायनिक तत्व है जो फफूंद (mould) द्वारा उत्पादित होता है।

  • ये ज़हर खासकर मक्का, मूंगफली और पिस्ता जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।

  • 1960 में पहली बार इसका पता तब चला जब इंग्लैंड में हज़ारों टर्की पक्षी दूषित चारे से मर गए।

  • यह लीवर कैंसर, अंग विफलता और गंभीर मामलों में मृत्यु का कारण बन सकता है।

 

समाधान: न्यूक्लियर तकनीक से बनी “चलती-फिरती प्रयोगशाला”

IAEA और FAO के वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रिया के Seibersdorf स्थित लैब में एक नई, सरल और किफायती तकनीक विकसित की है:

  • इस तकनीक में सिरेमिक आधारित एक सेंसर का उपयोग होता है, जो कार्बन इंक से बना होता है।

  • यह सेंसर एक छोटे से डिवाइस (Potentiostat) में लगाया जाता है और पिस्ता में अफ़्लाटॉक्सिन की 4 किस्मों की पहचान करता है।

  • परिणाम एक मोबाइल फोन के ज़रिए तुरंत देखा जा सकता है।

  • यह तकनीक 10 माइक्रोग्राम/किलोग्राम से 150 गुना कम मात्रा में भी अफ़्लाटॉक्सिन को पहचान सकती है।

  • पिस्ता के फल का खोल इसे बाहरी संक्रमण से बचाता है, लेकिन जब यह पकते समय फटता है, तब यह फफूंद के संपर्क में आ जाता है, जिससे अफ़्लाटॉक्सिन बनने की संभावना बढ़ जाती है।

पारंपरिक जांच के तरीके – महंगे और धीमे
  • अफ़्लाटॉक्सिन की जांच के लिए आमतौर पर महंगे उपकरण, विशेषज्ञ और समय की जरूरत होती है।

  • यह कई देशों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सुलभ नहीं होता।

  • खाद्य आपात स्थिति में धीमी जांच मानव जीवन के लिए जोखिम बन सकती है।

किसे होगा फायदा?
  • यह तकनीक कम संसाधन वाले देशों, ग्रामीण क्षेत्रों और आपात परिस्थितियों में तुरंत इस्तेमाल की जा सकती है।

  • तेज़, सस्ती और पोर्टेबल होने के कारण यह खाद्य सुरक्षा में एक क्रांति ला सकती है।

  • इससे वैश्विक व्यापार में भरोसा बढ़ेगा और पिस्ता जैसी उपजों का निर्यात आसान होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *