मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा गरीबों के लिए: प्रशांत रोकडे

 

नई दिल्ली। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखहि वैसी। यह बात उस समय जितनी प्रासंगिक थी, आज भी सौ फीसदी सच है। कई लोग हमेशा दीन-दुखी, गरीबों-वंचितों के लिए हमेशा कार्य करते रहते हैं और इसका प्रतिफल उन्हें मिलता ही है। क्योंकि, वह नेक कार्य में लगे रहते हैं।
भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी प्रशांत रोकडे अपने छात्रजीवन से ही लोकल्याण और सहायता करते रहे हैं। आज जब वो केंद्रीय सामाजिक अधिकारिता राज्य मंत्री श्री रामदास अठावले जी के निजी सचिव के रूप में अपना योगदान कर रहे हैं, तो भी यही भाव लिए हुए हैं। वो कहते हैं कि यदि कोई अपने काम के सिलसिले में मेरा पास किसी भी रूप में आता है, तो हम किसी भी तरह उस जरूरतमंद की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। मानव धर्म भी तो यही है। सरकार की मंशा भी तो है कि हर जरूरतमंद तक सरकारी सुविधाओं की पहुंच हो। वो बताते हैं कि एक बार स्कूली जीवन में हमारे एक सहपाठी को पुस्तक आदि की जरूरत थी, तो मैंने अपनी पुस्तकें उसी दे दी। जब भारतीय राजस्व सेवा में बतौर अधिकारी चयनित हुआ, उसके बाद से अपने क्षेत्र में युवाओ को शिक्षित होने के लिए कई योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा हूं।
एक सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि समाज का सबसे बडा अभिशाप गरीबी हैं। मेरी व्यक्तिगत राय है कि यह एक मनोभाव है, जो इंसान को आगे बढने से रोकता है। यदि हर कोई शिक्षित हो जाए, तो गरीबी से खुद ब खुद लडा जा सकता है। इसलिए मैं शिक्षा के माध्यम से गरीबी को खत्म करना चाहता हूं। अपने नौकरी जीवन में मैंने यह तय किया हुआ कि जो भी गरीब, वंचित अपने कामों को लेकर मेरे पास कार्यालय अथवा आवास पर आएगा, सरकारी नियम-कायदे के अनुरूप में मैं सदा ही उसकी सेवा करूंगा। यही मेरे जीवन का ध्येय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *