दिल्ली में हैं, तो एडवर्ड एल्बी की वर्जीनिया वूल्फ को जानिए

नई दिल्ली। हू इज अफ्रेड ऑफ वर्जीनिया वूल्फ ? एडवर्ड एल्बी द्वारा लिखित अत्यंत मशहूर नाटक है जिसका मंचन पहली बार 1962 में किया गया। उसके बाद से इसके हजारों मंचन हो चुके हैं। अब इसका मंचन एक बार फिर आगामी 7 और 8 मार्च, 2020 को मशहूर युवा निर्देशक मीता मिश्रा द्वारा दिल्ली के अक्षर थिएटर में किया जा रहा है। यह नाटक एक मध्यवय विवाहित जोड़े मार्था और जॉर्ज के तनावपूर्ण और उलझे हुए रिश्तों का परीक्षण करता है। पूरे नाटक में मार्था और जॉर्ज एक ही गीत अलग-अलग सुरों में गाते रहते हैं। एक दिन देर रात, विश्वविद्यालय की पार्टी के बाद उनके पास एक नवविवाहित जोड़ा निक और हनी आते हैं और उन्हें उनके तनावपूर्ण और उलझे-बिखरे रिश्तों का बोध करा जाते हैं।

वैसे तो यह नाटक तीन घंटे का है और दो अंतरालों के साथ पेश किया जाता रहा है पर निर्देशक मीता ने इसका संक्षेपण कर इसे 1 घंटा 50 मिनट का बनाया है। मीता ने इसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया है और 1962 के शिमला की पृष्ठभूमि में इसे खेलने की एक सफल कोशिश की है। स्त्री-पुरुष के संबंधों की पड़ताल करने के साथ-साथ यह नाटक एक स्त्री के मनोभावों को बड़ी ही मुखरता के साथ उठाता है। साथ ही, एक जमाने से स्त्री की पुरुषों पर चली आ रही निर्भरता को नए तरीके से व्याख्यायित करने की कोशिश भी करता है। इसका भारतीयकरण करते हुए मीता ने इसमें भारतीय परिवेश के हिसाब से कुछ परिवर्तन तो जरूर किए हैं, पर इस बात का खास ख्याल रखा है कि इसकी मौलिकता बरकरार रहे।

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