नई दिल्ली। बदलती जीवनशैली के साथ गैजेट्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और डायबिटीज के मामलों में वृद्धि के साथ सभी आयु वर्ग के लोगों में आंखों की समस्या बढ़ती जा रही है। इन्हीं गंभीर समस्याओं में मोतियाबिंद भी शामिल है, जिसमें आंखों की रेटिना पर एक काली परत चढ़ने लगती है। इस काली परत के कारण व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है। हालांकि टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ इलाज के परिणाम बेहतर हो गए हैं, लेकिन समस्या सिर्फ यह है कि लोग आज भी शुरुआती जांच और रोकथाम के तरीकों को महत्व नहीं देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 60 प्रतिशत भारतीय आबादी मोतियाबिंद जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ चुकी है और हर साल 12 लाख से अधिक लोग अपनी दृष्टि खो देते हैं। मोतियाबिंद को आमतौर पर ग्लूकोमा और काला मोतिया के नाम से भी जाना जाता है। दुर्भाग्य से इस गंभीर समस्या के कोई लक्षण नहीं नजर आते हैं और न ही दर्द का अनुभव होता है। इसमें आंखों की पुतली यानी कि रेटिना पर एक काली परत चढ़ने लगती है जिसके कारण व्यक्ति धीरे-धीरे अंधा हो जाता है। इसके बाद मरीज को आंखों की सर्जरी करानी पड़ती है। विश्व स्तर पर मोतियाबिंद अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइट के निदेशक डॉ. महिपाल सिंह सचदेव ने बताया कि,“मोतियाबिंद न केवल दृष्टि को प्रभावित करता है बल्कि व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। मोतियाबिंद की प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं होने के कारण कभी न ठीक होने वाले अंधेपन का प्रमुख कारण बनता है। यही कारण है कि 90 प्रतिशत से अधिक रोगी इसका पता लगाने में चूक जाते हैं और जब तक यह पता चलता है तब तक समस्या गंभीर हो चुकी होती है। एक बार मोतियाबिंद होने के बाद आंखों को पुरानी अवस्था में लाना संभव नहीं है। इसलिए लोगों को समय पर स्क्रीनिंग के महत्व को समझते हुए, समय-समय पर बच्चों की आंखों का चेकअप कराते रहना चाहिए। वहीं बड़ों को कम से कम एक साल में चेक अप कराना चाहिए।”
मोतियाबिंद के लक्षणों में धुंधला दिखना, अधिक रौशनी वाली चीजें देखने में समस्या, दोहरा दिखना, रंगों में बदलाव, रात में देखने में समस्या आदि शामिल हैं। इस समस्या से बचाव के लिए जीवनशैली और डाइट में बदलाव जरूरी है। नियमित रूप से योगा व एक्सरसाइज करें, पानी का अधिक से अधिक सेवन करें, विटामिन सी और विटामिन ई से भरपूर आहार का सेवन करें, धूम्रपान से दूर रहें और शराब का कम से कम सेवन करें। इस प्रकार मोतियाबिंद की समस्या से बचा जा सकता है।
डॉ. महिपाल सिंह सचदेव का कहना है कि,“इस समस्या की शुरुआती पहचान के साथ, मरीज को प्रारंभिक उपचार के तौर पर मेडिकेशन दिया जाता है। मेडिकेशन से कोई लाभ न मिलने पर कैटरेक्ट सर्जरी की जाती है। इसमें आंखों की कॉर्निया में 2 एमएम का कट लगाया जाता है, जिससे परत वाले लेंस को आसानी से निकाला जा सके। प्रभावित लेंस को निकालने के बाद उसकी जगह पर कृत्रिम यानी कि आर्टिफिशियल लेंस लगा दिए जाते हैं। यह एक पुरानी तकनीक है, जबकी रोबोटिक कैटरेक्ट सर्जरी इससे कहीं अधिक प्रभावी और आसान है, जिसमें सर्जरी की सारी प्रक्रिया लेजर की मदद से की जाती है। लेजर पर लगी इमेजिंग तकनीक आंखों के अंदर के भाग को अच्छे से देखने में मदद करती है। कोर्निया में चीरा लगाना, लेंस को निकालना और उसकी जगह पर कृत्रिम लेंस लगाना, ये सभी चीजें रोबोटिक तरीके से की जाती हैं। यह पूरी प्रक्रिया मात्र 30 सेकेंड्स में पूरी हो जाती है।”