बच्चों के लिए स्कूल बंद करना उनकी सेहत के लिए नहीं ठीक

 

नई दिल्ली । कोविड काल में बच्चों का मोबाइल पर स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। सात से पन्द्रह साल की उम्र के बच्चे का दिनभर में औसतन सात से आठ घंटे स्क्रीन टाइम हो गया है। जिसका उसकी आंखों पर असर पड़ रहा है, मोबाइल पर लगातार देखते रहना, बहुत करीब से मोबाइल की स्क्रीन को देखेने से बच्चों का मायोपिया बढ़ रहा है। मायोपिया आंखों के विजन संबंधित ऐसी स्थिति होती है जिसमें नजदीक की चीजें तो स्पष्ट दिखती हैं लेकिन दूर होने पर वह धुंधली या अस्पष्ट हो जाती हैं। नेत्र विशेषज्ञों की मानें तो यदि स्क्रीन टाइम की यह स्थिति लंबे समय और बनी रही तो मायोपिया पेंडेमिक से इंकार नहीं किया जा सकता। मायोपिया का इलाज कांटेक्ट लेंस या सर्जरी से ही संभव है।
एम्स के राजेन्द प्रसाद नेत्र चिकित्सालय के पूर्व प्रमुख और एके इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थेमेलॉजी के चेयरमैन डॉ. अतुल कुमार ने बताया हम प्रतिदिन बड़ी संख्या में ऐसे बच्चों को देख रहे हैं ऑनलाइन क्लॉसेस की वजह से जिनकी विजन संबंधित परेशानी बढ़ गई है। ऑनलाइन क्लासेस को किसी भी सूरत में फिजिकल क्लासेस का विकल्प नहीं कहा जा सकता, वुर्चअल क्लासेस से बच्चों की आंखों पर दवाब बढ़ता है, जिससे उनका मायोपिया बढ़ जाता है, यदि बच्चा लंबे समय से मोबाइल पर क्लॉस कर रहा है उसे बीस बीस बीस का फार्मुला अपनाना चाहिए। इसका मतलब है कि प्रत्येक बीस मिनट पढ़ने के बाद उसे बीस सेंकेंड कहीं और देखना चाहिए, इसके साथ ही बीस सेंकेंड का ब्रेक लें, इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि बच्चों को धूप में कम से कम एक घंटा बिताना चाहिए। यह देखा गया कि धूप में आंखों की मांसपेशियों में कम खिंचाव होता है, इसलिए वर्चुअल क्लास के साथ ही धूप में भी रोजाना कुछ समय बीताना चाहिए। फिजिकल गेम को नियमित दिनचर्चा में शामिल करें। कोविड पेंडेमिक के साथ ही अब स्थिति मायोपिया पेंडेमिक देखी जा रही है हमारे यहां प्रतिदिन हर उम्र के ऐसे बच्चे आ रहे हैं जिनकी आंखों पर मायोपिया की शुरूआत हो चुकी है। डॉ. अतुल कहते हैं कि अब जबकि किशोरा बच्चों का टीकाकरण शुरू किया जा चुका है तो कम से निर्धारित दूरी का पालन करते हुए बड़े बच्चों का स्कूल शुरू किया जाना चाहिए। मायोपिया की शुरूआत होने के बाद बच्चों को कांटेक्ट लेंस या फिर लेसिक सर्जरी से विजन को सही किया जाता है। विजन की यह स्थिति धीरे धीरे या तेजी से भी विकसित हो सकती है। हाई डिग्री मायोपिया को ग्लूकोमा की शुरूआत भी कहा जा सकता है।

25  प्रतिशत बढ़ गया औसत स्क्रीन टाइम

कोविड पेंडेमिक में भारतीय का औसतन स्क्रीन टाइम 25 प्रतिशत बढ़ गया है। स्मार्टफोन धारक भारतीय जहां पहले तीन से चार घंटे ही मोबाइल पर बिताते थे महामारी में अब औसतन हर भारतीय छह से आठ घंटे मोबाइल पर बिताना है। एक निजी मोबाइल फोन निर्माता कंपनी द्वारा वर्ष 2020 के दिसंबर महीने में जारी किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, प्रत्येक भारतीयों का मोबाइल पर औसतन 25 प्रतिशत समय बढ़ गया है। इसमें से 55 प्रतिशत वर्क फ्राम होम तथा 45 प्रतिशत मोबाइल गेमिंग के लिए मोबाइल पर समय बिताते हैं। इसमें पन्द्रह प्रतिशत बच्चे भी शामिल हैं जो वुर्चअल क्लास के लिए औसतन चार से पांच घंटे दिनभर में स्क्रीन टाइम शेयर करते हैं।

 

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