गाज़ा में इस्राइली हमले ने एक बार फिर पत्रकारिता की कीमत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अल-जज़ीरा के युवा संवाददाता अनस अल-शरीफ़, जिन्होंने अपने कलम और कैमरे से हमेशा सच दिखाने की कोशिश की, अब दुनिया को अपना आखिरी संदेश देकर हमेशा के लिए खामोश हो गए।

गाज़ा सिटी के अल-शिफा अस्पताल के पास इस्राइली हमले में अल-जज़ीरा के संवाददाता अनस अल-शरीफ़ सहित पाँच पत्रकार मारे गए। मरने से पहले 28 वर्षीय अल-शरीफ़ ने सोशल मीडिया पर अपना ‘आखिरी संदेश’ लिखा था, जिसे उनकी मौत की पुष्टि के बाद उनके एक करीबी दोस्त ने पोस्ट किया।
अल-शरीफ़ के संदेश में लिखा था — “यह मेरी वसीयत है, मेरा आखिरी संदेश। अगर ये शब्द आप तक पहुँचते हैं, तो समझ लीजिए इस्राइल मुझे मारने और मेरी आवाज़ को ख़ामोश करने में सफल हो गया है। अल्लाह की सलामती और रहमत आप सब पर हो। अल्लाह जानता है कि मैंने अपनी क़ौम के लिए आवाज़ बनने में पूरी ताकत और मेहनत लगा दी, जब से मैंने जबालिया शरणार्थी कैंप की गलियों में आँख खोली।”
उन्होंने उम्मीद जताई थी कि वे अपने परिवार के पास अशकेलोन (अल-मजदल) लौटेंगे, लेकिन लिखा — “अल्लाह का फ़ैसला सबसे ऊपर है और उसका हुक्म आख़िरी है।”
अल-शरीफ़ ने अपने जीवन की तकलीफ़ों का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्होंने कभी सच्चाई दिखाने से परहेज़ नहीं किया। उन्होंने दुनिया से अपील की कि वे गाज़ा की आवाज़ को कभी दबने न दें और सीमाओं में बंधकर न रहें — “हमारे कब्ज़े वाले वतन में इज़्ज़त और आज़ादी का सूरज चमकाने के लिए पुल बनो।”
उन्होंने खास तौर पर अपने परिवार — अपनी छोटी बेटी, बेटे, पत्नी और मां — का ख्याल रखने की गुज़ारिश की। “अगर मैं मर जाऊं, तो यह जान लें कि मैंने अपने उसूलों पर क़ायम रहते हुए जान दी। अल्लाह के हुक्म पर राज़ी हूं और यक़ीन है कि जो अल्लाह के पास है, वही बेहतर और हमेशा रहने वाला है। गाज़ा को मत भूलना और मुझे अपनी दुआओं में याद रखना।”
अल-जज़ीरा ने बताया कि अल-शरीफ़ के साथ मोहम्मद क़रीकेह, और कैमरामैन इब्राहिम ज़ाहेर, मोअमेन अलीवा और मोहम्मद नौफल भी मारे गए। चैनल के लाइव प्रसारण के दौरान एंकर अपनी भावनाएं रोकते हुए यह खबर दे रहे थे।
हमले के कुछ ही समय बाद इस्राइली सेना ने अल-शरीफ़ को निशाना बनाने की बात स्वीकार की और उन्हें ‘हमास का आतंकी’ बताया। इस्राइली डिफेंस फोर्स (IDF) का दावा है कि वे हमास सेल के प्रमुख थे और रॉकेट हमलों की योजना बनाते थे।
वहीं, फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने इस हमले को “खूनी अपराध” और “हत्या की साज़िश” करार दिया है।