पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक, जिन्होंने मंगलवार 5 अगस्त 2025 को अंतिम सांस ली, न केवल एक अनुभवी राजनेता थे, बल्कि जाट समाज की एक प्रभावशाली और प्रखर आवाज भी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक जाट परिवार में हुआ था और उन्होंने हमेशा अपनी जातीय पहचान को सम्मानपूर्वक और मजबूती से रखा।
जाट समुदाय के लिए एक राजनीतिक प्रतीक
सत्यपाल मलिक का नाम जाट राजनीति के एक सशक्त चेहरे के रूप में लिया जाता है। वे उन चुनिंदा नेताओं में रहे जिन्होंने जाटों की सामाजिक, राजनीतिक और किसान हितों की बात खुलकर की। खासतौर पर अपने राज्यपाल कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने कई बार किसानों, नौजवानों और ग्रामीण भारत की समस्याओं को खुले मंचों पर उठाया।
वे भले ही विभिन्न दलों में रहे — कांग्रेस, जनता दल और अंततः भारतीय जनता पार्टी — लेकिन उनकी निष्ठा हमेशा आम आदमी, विशेषकर ग्रामीण भारत और किसान वर्ग के प्रति रही।
किसान आंदोलन में समर्थन
अपने बेबाक बयानों के लिए पहचाने जाने वाले सत्यपाल मलिक ने 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान खुलकर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि “सरकार को किसानों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, वरना जनता माफ नहीं करेगी।” यह बयान उन्हें एक ‘बागी राज्यपाल’ के रूप में चर्चित बना गया, लेकिन जाटों और किसानों के बीच उनकी लोकप्रियता और सम्मान और बढ़ गया।
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जाट राजनीति में खाली स्थान
उनकी मृत्यु के साथ ही जाट राजनीति में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है। वे एक ऐसे नेता थे जो जातिगत पहचान से ऊपर उठकर राष्ट्रीय मुद्दों पर भी मुखर रहते थे, लेकिन जाट समाज के अधिकारों और सम्मान के मुद्दों पर कभी पीछे नहीं हटे।