शिबू सोरेन — एक नाम नहीं, बल्कि संघर्ष, सामाजिक क्रांति और आदिवासी अस्मिता की एक जीवित परंपरा थे। उन्होंने अपने जीवन में जो राह चुनी, वह सत्ता का मार्ग नहीं था, बल्कि एक लंबी लड़ाई का रास्ता था — जहाँ हर कदम पर संघर्ष था, लेकिन लक्ष्य था अपने लोगों को न्याय, सम्मान और पहचान दिलाना।

Shibu Soren Funeral: झारखंड आंदोलन के प्रणेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सोमवार को 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नेमरा के बड़का नाला के पास पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मंगलवार (5 अगस्त) दोपहर 2 बजे किया जाएगा। छोटे बेटे बसंत सोरेन उन्हें मुखाग्नि देंगे।
यह जानकारी नेमरा गांव के मुखिया जीत लाल टुडू और झारखंड सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री फागु बेसरा ने साझा की।शिबू सोरेन के अंतिम संस्कार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कई राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों के शामिल होने की संभावना है।
शिबू सोरेन: एक सामाजिक सुधारक से झारखंड के प्रतिष्ठित आदिवासी नेता तक का सफर
झारखंड राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले आदिवासी नेता शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। ‘गुरुजी’ के नाम से प्रसिद्ध सोरेन न केवल एक राजनीतिक शख्सियत थे, बल्कि एक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत भी रहे। उन्होंने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए न सिर्फ लंबी लड़ाई लड़ी, बल्कि कई व्यक्तिगत बलिदान भी दिए।
शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि: झारखंड के सभी सरकारी स्कूल मंगलवार को रहेंगे बंद
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन के सम्मान में राज्य सरकार ने तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। इसी क्रम में, मंगलवार 5 अगस्त को राज्य के सभी सरकारी स्कूल बंद रहेंगे। राज्य के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव उमाशंकर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया: रांची के कई निजी स्कूलों ने भी मंगलवार को छुट्टी की घोषणा की है।
शुरुआत एक साधारण गांव से
11 जनवरी 1944 को बिहार (अब झारखंड) के रामगढ़ ज़िले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन का बचपन अभावों में बीता। वह संथाल आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। जब उन्होंने देखा कि आदिवासी किसान साहूकारों के कर्ज में दबे हैं और उनकी मेहनत का फल कोई और खा रहा है, तभी उनके भीतर विरोध की ज्वाला जाग उठी।
साहूकारी प्रथा के खिलाफ विद्रोह
गांवों में साहूकारों की जकड़ इतनी थी कि आदिवासी किसान अपनी फसल का एक तिहाई हिस्सा ही रख पाते थे, बाकी सब ब्याज के नाम पर चला जाता था। शिबू सोरेन ने इसके खिलाफ बिगुल फूंका। उन्होंने लोगों को संगठित किया और कब्जाई गई ज़मीनों पर फिर से फसल कटवाने का अभियान चलाया। इस दौरान महिलाएं खेतों में काम करती थीं और पुरुष धनुष-बाण लेकर उनकी रक्षा करते।
‘गुरुजी’ और शिक्षा की मशाल
शिबू सोरेन को ‘गुरुजी’ का नाम इसलिए मिला क्योंकि वे गांव में उन बच्चों के लिए रात में स्कूल चलाते थे, जो दिन में काम के चलते पढ़ाई नहीं कर पाते थे। वह मानते थे कि जागरूकता और शिक्षा ही शोषण के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है।
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। यह केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन था — ज़मीन की लूट, खनिजों की बर्बादी और आदिवासियों के विस्थापन के खिलाफ आवाज़। उन्होंने राज्य गठन की मांग को राष्ट्रीय मंच पर मजबूती से उठाया।
झारखंड राज्य निर्माण का नायक
साल 2000 में जब झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला, तब उस ऐतिहासिक क्षण के पीछे सबसे बड़ा चेहरा शिबू सोरेन का था। उन्होंने उस सपने को साकार किया, जो पीढ़ियों से आदिवासी समाज देखता आया था।
सादगी और संघर्ष का प्रतीक
तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और केंद्रीय कोयला मंत्री रह चुके शिबू सोरेन ने कभी भी सत्ता को अपने सिर नहीं चढ़ने दिया। वह आज भी उतने ही सहज, सरल और जमीन से जुड़े हुए दिखते थे। हर पार्टी, हर नेता — चाहे विरोधी ही क्यों न हो — उन्हें ‘गुरुजी’ कहकर सम्मान देता था।
एकता के सूत्रधार
शिबू सोरेन ने न केवल झारखंड में, बल्कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी समुदायों में भी एकता का संदेश फैलाया। उन्होंने भाषा, जाति, धर्म से ऊपर उठकर ‘आदिवासी अस्मिता’ को केंद्रीय मुद्दा बनाया।
शेष नहीं, अनंत हैं ‘गुरुजी’
शिबू सोरेन केवल एक नेता नहीं थे, वे एक विचार थे — जो हर उस आवाज़ में जिंदा रहेगा जो अन्याय के खिलाफ उठती है।
उनकी जीवन यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो समाज में बदलाव लाना चाहता है, चाहे उसके पास संसाधन हों या नहीं।
अंतिम दर्शन और सांविधिक सम्मान
प्रधानमंत्री ने दिल्ली के श्री गंगाराम अस्पताल में जाकर शिबू सोरेन को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी और उनके पुत्र हेमंत सोरेन को भावभीन आलिंगन कर सांत्वना दी। एक सार्वजनिक वीडियो में उन्हें अस्पताल परिसर में शोकाकुल हेमंत सोरेन से गले मिलते हुए देखा गया।
उनकी पार्थिव देह रांची स्थित मोरहाबादी खिड़की, झामुमो कार्यालय और विधानसभा में जनता और जनप्रतिनिधियों के लिए रखी गई। अंत्येष्टि उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़) में आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ राजकीय सम्मान के बीच आयोजित की गई।