हाथरस कांड: पुलिस के खिलाफ मामला दर्ज कराने और एसटीएफ से जांच के लिये याचिका

नई दिल्ली। हाथरस में दलित लड़की से कथित बलात्कार और बाद में उसकी मृत्यु की घटना से जुड़े पुलिसकर्मियों, मेडिकल स्टाफ और दूसरे सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों से संरक्षण) कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराने के लिये उच्चतम न्यायालय में एक नयी जनहित याचिका दायर की गयी है। याचिका में सारे मामले की जांच के लिये विशेष कायर्य बल गठित करने का भी अनुरोध किया गया है।

यह जनहित याचिका महाराष्ट्र के दलित अधिकारों के कार्यकर्ता चेतन जनार्द्धन कांबले ने दायर की है। उन्होंने कहा कि उप्र सरकार द्वारा एक अन्य जनहित याचिका में दाखिल हलफनामे से ‘हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में गड़बड़ी करने और साक्ष्य नष्ट करने में शासकीय समर्थन’ के बारे में कुछ ज्वलंत तथ्य सामने आने के बाद वह यह जनहित याचिका दायर करने के लिये बाध्य हुये हैं। याचिका में कहा गया है कि मीडिया की खबरों में जो अटकलें लगायी जा रही थी कि सरकारी अस्पतालों द्वारा तैयार मेडिकल रिपोर्ट में लीपा-पोती और आरोपी व्यक्तियों को संरक्षण देने के इरादे से पीड़ित के परिवार की आपत्तियों के बावजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसका रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया , अब उनका राज्य सरकार के जवाबी हलफनामे और इसके साथ संलग्न दस्तावेजों से खुलासा हुआ है।

इस याचिका पर 15 अक्टूबर को सुनवाई होने की संभावना है। अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि इस घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है कि, ‘‘किस तरह से सरकारी तंत्र ने आरोपियों के लिये पूरा संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये साक्ष्यों के साथ हेराफेरी की और उन्हें नष्ट करने सहित सभी तरह के प्रयासों का सहारा लिया, इसकी वजह उसे ही पता होगी।’’ याचिका के अनुसार, ‘‘तथ्यों से इस अपराध के संबंध में आरोपियों को बचाने और साक्ष्यों को नष्ट करने में उप्र पुलिस और राज्य सरकार की मशीनरी के कतिपय अधिकारियों की संलिप्तता और मिलीभगत के साफ संकेत मिलते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने हाथरस में एक दलित लड़की से कथित बलात्कार और बाद में उसकी मृत्यु की घटना को छह अक्टूबर को बेहद ‘लोमहर्षक’ और ‘हतप्रभ’ करने वाली बताते हुये कहा था कि वह इसकी सुचारू ढंग से जांच सुनिश्चित करेगा। न्यायालय ने इसके साथ ही उप्र सरकार से आठ अक्टूबर तक हलफनामे पर यह जानना चाहा है कि घटना से संबंधित गवाहों का संरक्षण किस तरह हो रहा है उप्र सरकार ने इस मामले में पहले दाखिल किये हलफनामे में इसकी जांच शीर्ष अदालत की निगरानी में केन्द्रीय एजेन्सी से कराने का आदेश देने का अनुरोध किया था।

केन्द्र ने इस घटना की जांच सीबीआई को सौंपने का उप्र सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया था। इसके बाद सीबीआई ने नया मामला दर्ज करके अपनी जांच शुरू कर दी है। हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से अगड़ी जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी थी। पीड़ित की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गयी थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिये मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना था कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।

इस घटना को लेकर कई व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों और वकीलों ने न्यायालय में अनेक जनहित याचिकायें दायर कर इसकी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया है। इस मामले में हस्तक्षेप के लिये भी कई आवेदन दाखिल किये गये हैं। इस नयी याचिका में आरोप लगाया गया है कि अलीगढ़ स्थित सरकारी अस्पताल ने पीड़ित के स्वैब के नमूने नहीं लिये और न ही उसने पीड़िता के शरीर के जख्मों को देखने के बावजूद फटे हुये कपड़ों और अंत:वस्त्रों पर खून के निशान और उसके कपड़े बदले जाने के बाद ड्रापशीट को एकत्र किया । यही नहीं, अस्पताल ने इस घटना के बाद आठ दिन तक वीर्य के परीक्षण का इंतजार किया और उस समय तक कोई फारेंसिक साक्ष्य मिलने ही नहीं थे।

याचिका में कहा गया है कि इस मामले की जांच पूरी होने से पहले ही राज्य के उच्च स्तर के पुलिस अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों ने बलात्कार की संभावना से इंकार कर दिया और इस बारे में सार्वजनिक बयान भी दिये। इससे राज्य की पुलिस और आरोपियों के बीच सांठगांठ का साफ संकेत मिलता है।

याचिका में कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों ने जिस तरह रात के अंधेरे में पीड़ित के शव का अंतिम संस्कार किया उससे भी इस अपराध की जांच करने की बजाये इसे रफा दफा करने में उनकी संलिप्तता की बू आती है।

याचिका में सीबीआई और उप्र पुलिस को अलग रखते हुये इस घटना की विशेष कार्य बल से जांच कराने का निर्देश देने और पुलिस, अस्पताल के स्टाफ तथा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में केन्द्र और राज्य सरकार को पीड़ित और उसके रिश्तेदारों के 14 और 19 सितंबर को दर्ज बयानों की वीडियो रिकार्डिंग और सफदरजंग अस्पताल द्वारा पोस्टमार्टम के दौरान एकत्र साक्ष्यों सहित सारे साक्ष्य जमा कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

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