कृषि व्यवसायों में विकलांगों लिए तकनीक का प्रयोग जरूरी

नई दिल्ली। सोसाइटी फाॅर डिसेबिलीटी एण्ड रिहेबिलिटेशन स्टडीज (नयी दिल्ली) के तत्वावधान में ‘‘भारत में दक्षता विकास तथा स्वयं सहायता समूहों के जरिए विकलांग कृषकों का आर्थिक सशक्तिकरण’’ विषय पर इंडियन स्पाइनल इन्जुरी सेन्टर के सम्मेलन कक्ष में आयोजित तीन-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हो गया। कार्यक्रम के समापन के मौके पर दस-सूत्रीय मांग पत्र पारित किया गया। ऐसी मांगों में कृषि क्षेत्र में विकलांगों की भागीदारी बढ़ाने हेतु नये यंत्रों तथा तकनीकों के विकास की दिशा में शोध तथा विकास गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाना, विकलांग कृषकों हेतु कर्ज की प्रक्रिया का सरलीकरण, विकलांग कृषकों को जमीन मुहैय्या कराया जाना, राष्ट्रीय दक्षता विकास निगम के माध्यम से विकलांग कृषकों का प्रशिक्षण, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों के माध्यम से निगमित सामाजिक दायित्व गतिविधियों के तहत नये विकसित यंत्रों तथा तकनीकों के हासिल करने में मदद् किया जाना तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद/भारत सरकार के तहत ‘विकलांगता प्रकोष्ठ का गठन किया जाना शामिल है।
कार्यशाला का उद्घाटन 23 मार्च 2018 को प्रसिद्ध पत्रकार तथा पूर्व राज्य सभा सांसद श्री कुलदीप नैयर के द्वारा किया गया, जिन्होंने अपने उद्घाटन व्याख्यान में भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के तहत महत्वपूर्ण पदों (जिनमें राज्य सभा तथा लोकसभा की सदस्यता शामिल है) पर नियुक्ति के मामले में विकलांगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके मतानुसार बगैर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के विकलांग कृषकों का आर्थिक सशक्तिकरण कदापि नहीं हो सकता। उद्घाटन के मौके पर श्री नैयर द्वारा एक ‘स्मारिका’ का भी विमोचन किया गया। भारत सरकार के वाणिज्य तथा उद्योग मंत्री श्री सुरेश प्रभु, जो कार्यशाला का उद्घाटन करने वाले थे, के कार्यक्रम में परिवत्र्तन होने से वह शरीक नहीं हो पाये तथा उन्होंने अपना वीडियो संदेश भेजा जिसे प्रतिभागियों को प्रदर्शित किया गया।
इस अवसर पर अपने सारगर्भित व्याख्यान में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डाॅ. एस. डी. कुलकर्णी ने कृषि तथा कृषि व्यवसायों में विकलांगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अधुनातन तकनीकों के अनुप्रयोग का आह्वान किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इग्नू के प्रोफेसर तथा पूर्व प्रति कुलपति डाॅ. पी. आर. रामानुजम ने किया, जिन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में दक्षता विकास तथा स्वयं सहायता समूहों के जरिए कृषि क्षेत्र में विकलांगों के आर्थिक सशक्तिकरण पर जोर दिया। कार्यक्रम का शुभारंभ जे. एन. यू. के विकलांगता अध्ययन विशेषज्ञ तथा संस्था के मानद अध्यक्ष डाॅ. जी. एन. कर्ण के स्वागत व्याख्यान से हुआ। डाॅ. कर्ण ने अपने स्वागत व्याख्यान में कृषि तथा कृषि व्यवसाय में विकलांगों की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु जनमानस के दृष्टिकोण में परिवत्र्तन की जोरदार वकालत की। उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करने वाले अन्य गणमान्य व्यक्तियों/विशेषज्ञों में निफटेम विश्वविद्यालय, सोनीपत (हरियाण) के डाॅ. संजय भयाना तथा जे. एन. यू. के डाॅ. सत्यनारायण प्रसाद के नाम विशेषतः शामिल है। इस मौके पर दिवंगत प्रो. स्टीफन हाॅकिंग, जाबेद आबिदी तथा सुरेश प्रसाद के (जिन्होेंने किसी-न-किसी ढ़ंग से विकलांगों के सशक्तिकरण आन्दोलन में योगदान दिया) के सम्मान में एक मिनट का मौन रखा गया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात तीन तकनीकी सत्र तथा समापन सत्र का आयोजन कार्यक्रम के दूसरे दिन (यानि 24 मार्च 2018) किया गया, जिसमें देश के विभिन्न भागों से आये विशेषज्ञों/पेशेवरों ने कार्यशाला के मुख्य विचारबिन्दुओं पर अपने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से प्रकाश डाला। ऐसे विशेषज्ञों/पेशेवरों में डाॅ. आदर्श कुमार, डाॅ. आर. रामर, डाॅ. आर. के. सरीन, डाॅ. रीता बागची, डाॅ. बी विजयलक्ष्मी तथा डाॅ. मालाकार के नाम विशेषतः शामिल हैं। तकनीकी सत्र के पश्चात् समापन सत्र में जानेमाने अर्थशास्त्री तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के डाॅ. बी. आर. अम्बेदकर काॅलेज के प्राचार्य डाॅ. जी. के. अरोड़ा का समापन व्याख्यान हुआ, जिन्होंने अपने विद्ववतापूर्ण व्याख्यान में विकलांगों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण के बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया। संस्था के मानद अध्यक्ष डाॅ. जी. एन. कर्ण के द्वारा सधन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम का प्रायोजन नाबार्ड, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, बैंक आॅफ महाराष्ट्र तथा इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड के द्वारा किया गया।

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