हैदराबाद का चुनावी परिणाम क्या कुछ कहता है ?

समृद्धि भटनागर

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में देश के प्रधानमंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों की रुचि पर सवाल उठे। अब जब नतीजे ने जवाब दे दिए हैं, तब महाराष्ट्र के कुछ जिलों के ज़िला परिषद चुनाव और उत्तर प्रदेश में एमएलसी चुनाव के परिणाम में भाजपा की शिकस्त की बात हो रही। हमने बार-बार कहा है कि अब राजनीति के केंद्र में कांग्रेस की जगह भाजपा है। पहले कांग्रेस के विरुद्ध समूची पार्टियां एकजुट हो जाया करती थीं। अपेक्षित परिणाम भी मिलते थे। अब भाजपा के ख़िलाफ़ सिर्फ़ लफ़ज़ी एकजुटता दिखती है, तो रिज़ल्ट शून्य रहता है। बीच की एकाध तसल्ली से हम ख़ुश हो जाते हैं। भाजपा जैसी तैयारी और रणनीति से कथित सेकुलर सियासी दल कोसों दूर हैं।
एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ना तो ख़ूब आता है। हैदराबाद में 3 सीट से 44 पर भाजपा आसानी से नहीं पहुंची और न बिहार में सहज वो सत्ता की प्रमुख भागीदार बनी। कांग्रेस ने बिहार में 70 जगह प्रत्याशी उतारे लेकिन राहुल गांधी ने सिर्फ़ 6 सभा की। इधर हैदराबाद में कौन बड़ा नेता गया चुनाव प्रचार में। खिल्ली भी उड़ाई गई कि पीएम और सीएम को भाजपा ने लगा दिया एक नगर निगम चुनाव में।

भाजपा सिर्फ़ वार्ड नहीं बल्कि 24 विधानसभा और 5 लोकसभा सीटें देख रही थी, जो ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के अंतर्गत आती हैं।
यह नगर निगम 4 जिलों में है। जिनमें हैदराबाद, मेडचल-मलकजगिरी, रंगारेड्डी और संगारेड्डी शामिल हैं। नतीजे सामने हैं टीआरएस 60, भाजपा 44, एआईएमआईएम 44 और कांग्रेस को 1 सीट हासिल हुई है। एक पर अन्य। यह आंकड़े टीआरएस की हार बताते हैं। जबकि 2016 में हुए चुनाव की बात करें तो टीआरएस ने 150 वार्डों में से 99 वार्ड में जीत हासिल की थी, जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 वार्ड में जीत मिली थी। जबकि बीजेपी महज़ तीन वार्ड में जीत दर्ज कर सकी थी और कांग्रेस को दो सीट मिली थी। कांग्रेस को इस बार सिर्फ़ एक सीट से संतोष करना पड़ा, उम्मीदवार 150 उतारे थे। ज़ाहिर है एआईएमआईएम को सीटों का घाटा नहीं हुआ है, बस सीट इधर-उधर हुई है। जैसे पहले जामबाग पर एआईएमआईएम का कब्ज़ा था, इसे भाजपा ने छीन लिया है।
इसका बदला एआईएमआईएम ने भाजपा से घांसीबाज़ार जीत कर ले लिया है। लड़ी सिर्फ 50 जगह थी। हालाँकि तेलंगाना सरकार में टीआरएस की सहयोगी एआईएमआईएम है। यदि दोनों दल साथ लड़े होते, तो संभव है, टीआरएस का भला होता और भाजपा की अप्रत्याशित बढ़त न होती। पश्चिम बंगाल के पिछले विस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत तृणमूल से 3 फ़ीसद ही कम रहा था। भाजपा ने जिस तरह कमर कसी है, उसे देखते हुए कहना बेजा नहीं होगा कि वहां होने जा रहे विधान सभा चुनाव में भाजपा बड़े फ़ायदे में रहेगी। यदि ममता दी सत्ता बरक़रार रखना चाहती हैं और बाक़ी दल ईमानदारी से भाजपा को रोकना चाहते हैं तो सभी को एकजुट होना पड़ेगा। वरना हैदराबाद होने में कोई रोक नहीं सकता।

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