प्रो. (डॉ) सुबोध भटनागर
Union Budget 2022: किसानों से संबंधित तीनो कानूनों पर लंबी ऊहापोह के बाद उनकी वापसी के साथ किसान भी आंदोलन से पीछे हटे। भारत मूलतः कृषि पर आधारित है और देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि से जुड़ा हुआ है। हरित क्रांति के बाद हमारा देश खाद्यान्न के मामले में ना केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि निर्यातक की भूमिका में भी स्थापित हुआ। इसमें हमारे प्रगतिशील किसानों की जी तोड़ मेहनत के साथ साथ कृषि वैज्ञानिकों और संस्थानों की भी बड़ी भूमिका रही।
केंद्रीय सरकार को भली भांति एहसास है कि उसे मूलभूत ढांचे, रक्षा आदि के साथ साथ कृषि क्षेत्र की निरंतर प्रगति को अपनी प्राथमिकता में रखना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में यह प्राथमिकताएं परिलक्षित हो रही हैं। गांव से शहरों की और रुख करने वाले शिक्षित युवाओं की रुचि स्टार्ट अप के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में करने के लिए आर्थिक सहयोग का प्रावधान किया गया जो युवाओं के आर्थिक उत्थान का साधन बनेगा।
सभी प्रकार के कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि संस्थानों को वर्ष 2023 को मोटा अनाज के लिए समर्पित रहने का संदेश उन फसलों कि खेती को पुनर्जीवित करना है जो बहू उपयोगी है लेकिन किन्हीं कारणों से उपेक्षित है। अनुसंधानों से विदित है कि बाजरा, रागी जैसी फैसले ना केवल स्वास्थ्य के लिए बेमिसाल हैं बल्कि आय का भी अच्छा साधन हैं।
रसायनों के लगातार उपयोग से स्वास्थ्य के लिए खतरा बनी फसलों और सब्जियों के विकल्प के रूप में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि संस्थानों को निर्देशित करने के साथ साथ गंगा के तट पर 5 किलोमीटर की परिधि को ऑर्गेनिक खेती के प्रयोग करने का प्रस्ताव सीमांत किसानों के लिए संजीवनी का काम करेगा और इससे रसायन मुक्त खेती का मार्ग प्रशस्त होगा। एग्रो फॉरेस्ट्री और पादप बायोमास के उपयोग से पर्यावरण संरक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन होने की आशा की जा सकती है। यद्यपि सरकार ने बजट में कृषि मंत्रालय का दायरा बढ़ाने का जो संकेत दिया है उससे कृषि के उत्थान की प्रतिबद्धता नजर आती है बशर्ते इसके माध्यम से उत्पादन आधारित प्रोत्साहन की पहल की जाए फिर चाहे वह कृषि संस्थान हों, किसान हों या फिर युवा उद्यमी जो नए प्रयोगों द्वारा कृषि के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने को तत्पर हैं।