कांग्रेस और भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गया है ग्वालियर उपचुनाव

ग्वालियर। मध्यप्रदेश की सरकार ही नहीं बदली बल्कि दल बदल ने ग्वालियर के सियासी समीकरण ही उलट – पलट कर दिए है। सवा साल पहले जो कांग्रेस के लिए वोट मांग रहे थे उन्हें अब भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट मांगना पडेगा और जो नेता कांग्रेस में टिकिट मांग – मांगकर बूढ़े हो गए फिर टिकिट की दौड़ में शामिल है।
हालाँकि कांग्रेस ने अभी तक टिकिट वितरण को लेकर अपनी प्राथमिकता नहीं खोली है कदाचित दाबेदारी पेश करने का सिलसिला जरूर शुरू हुआ है। कांग्रेस में सबसे ज्यादा भीड़ ग्वालियर पूर्व सीट के लिए है।
यहां जो नाम चर्चा में उनमें से कई तो ग्वालियर दक्षिण के निवासी है। हालाँकि लश्कर पूर्व के समय यह इलाके इसी क्षेत्र में आते थे. दावेदारों में सबसे ज्यादा ब्राह्मण ही हैं।
हालाँकि इस क्षेत्र के लिए चर्चित नाम है प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और एपेक्स बैंक के प्रशासक रहे अशोक सिंह का। कमलनाथ हो या दिग्विजय सिंह या फिर सुरेश पचौरी या अरुण यादव या राहुल भैया ,सभी नेताओं के नजदीक अशोक सिंह चार बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। सिंधिया समर्थको के खुले विरोध और मोदी लहार के बावजूद उन्होंने भाजपा को हर बार अच्छी टक्कर दी। अब उनके समर्थक उन्हें ग्वालियर पूर्व से उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहे हैं। हालाँकि उन्होंने अभी तक इस मांग पर अपनी कोई सार्वजनिक राय नहीं रखी है।
ग्वालियर पूर्व से दावेदारों में शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा है। वे और उनकी पत्नी श्रीमती रीमा शर्मा कई बार पार्षद रह चुके हैं। एक बार बागी होकर लश्कर पूर्व से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन अब क्षेत्रों का परिसीमन हो चुका है। इस बार वे सशक्त दावेदार हैं। वे छात्र नेता रहे हैं और युवक कांग्रेस की राजनीति में भी सक्रीय रहे। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी तो डॉ शर्मा ने उनके साथ पार्टी न छोड़कर कांग्रेस में ही रहकर सबको चौंका दिया। उनके प्रभाव वाले जिले में कांग्रेस का सिंधिया को साथ न मिलना उनके लिए बड़ा झटका था।
दावेदारों में दूसरा सबसे प्रबल नाम है – आनंद शर्मा। आनंद शर्मा भी छात्र राजनीति के जमाने से ही कांग्रेस में सक्रीय हैं। वे युवक कांग्रेस ,कांग्रेस में अनेक पदों पर रहे और कई बार पार्षद भी। वे ग्वालियर दक्षिण से सदैव विधानसभा टिकिट की मांग करते रहे लेकिन मिल नहीं सका। वे खांटी कॉंग्रेसी है। जब 1996 में स्व माधव राव सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़ी तब भी कांग्रेस में ही रहे। हालाँकि उन्हें सिंधिया परिवार का ख़ास माना जाता था लेकिन वे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नहीं गए। अब वे पूर्व क्षेत्र से टिकिट मांग रहे हैं।
इस क्षेत्र से एक और नाम दिग्विजय सिंह के कट्टर समर्थक माने ,जाने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता वासुदेव शर्मा का भी है। वे एक बार पार्षद रहे लेकिन सिंधिया परिवार के मुखर विरोधी होने के कारण सत्ता में कोई सके। कमलनाथ सरकार ने बिलकुल अंतिम क्षणों में उन्हें जिला केंद्रीय सहकारी बैंक ग्वालियर का प्रशासक बनाया था लेकिन उसके कुछ घंटों बाद ही कांग्रेस सरकार चली गयी और शिवराज सरकार ने उन्हें पद दिया। अब वे पूर्व क्षेत्र से विधानसभा की दावेदारी कर रहे हैं।
इस क्षेत्र में महिलाओं की भी दावेदारी देखी जा रही है क्योंकि इस क्षेत्र से एक महिला – श्रीमती माया सिंह ,भारतीय जनता पार्टी से विधायक चुनी जा चुकीं है और मंत्री भी रहीं है। उन्होंने कांग्रेस के मुन्ना लाल गोयल को ही हराया था जो अब भाजपा का ही दामन थाम चुके हैं। यही वजह है कि इस क्षेत्र से एक नाम और है वह है – श्रीमती रश्मि परिहार है। दिवंगत मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की ख़ास रहीं श्रीमती परिहार के पति ब्रज मोहन सिंह परिहार दिग्विजय समर्थक है और पार्षद तथा संगठन में कई पदों पर रह चुके हैं। श्रीमती परिहार एक बार ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस की उम्मीदवार भी बनीं थीं लेकिन जीत नहीं पाई। उसके बाद सिंधिया परिवार से चलते पंगे के कारण के उन्हें फिर टिकिट नहीं मिला। अब उनके समर्थक उन्हें टिकिट देने की मांग कर रहे हैं।
लेकिन कांग्रेस में अंदर एक नाम जो दावेदारी कर रहा है वह चौंकाने वाला है। यहाँ नाम एक वरिष्ठ पत्रकार है। कई अखबारों में सम्पादक और एक टीवी चैनल में काम कर चुके पत्रकार महोदय लम्बे समय से सोशल मीडिया पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे है और अब वे ग्वालियर पूर्व क्षेत्र से टिकिट की दावेदारी कर रहे हैं। सूत्रों की माने कांग्रेस के कुछ नेता उनके नाम को भी आगे बढ़ा रहै हैं।

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